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(सिरि भूवलय = विद्वानों के विचार
१. ब्रह्मर्षि देवरात
वेदों के काल से ही चार गुप्त भाषाएँ हैं आर उन भाषाओं को आज तक किसी ने नहीं देखा है और किसी को नहीं दिखाया गया है ऐसा कहा जाता है। उन भाषाओं के प्रयोग को, मैंने भी कहीं नहीं देखा है। सिरि भूवलय का परिचय कराने वाले पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी का मैं चिर ऋणी रहूँगा क्योंकि पुरातन काल से ही किसी के भी न देखे या न दिखाए गए गुप्त भाषाओं का अनुभव उन्होंने मुझे कराया साथ ही वेदों में कहे गए बिन्दु, शून्य, रेखा, गणित विज्ञान तथा ऐसे ही कई अनेक विषयों ने मुझे आकर्षित किया है, यह मेरे लिए संतोष की बात है। सिरि भूवलय ग्रंथ में आने वाले अंकों से अक्षर
और शब्द उन्हीं शब्दों से अर्थज्ञान और अक्षरों से शब्द, उन्हीं अंकों से गणित, गणित से तत्व ज्ञान, आदि वस्तु सिद्ध हैं । यह अंश वेदों में कहा गया वैशिष्ट ही है वरन इन्हें किसी ने भी देखा और दिखाया नहीं है। श्री पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी ने मुझे, इस अंकाक्षर स्वरूप के सिरि भूवलय में शून्य से नौ तथा शून्य अंक से १ से लेकर ६४ अक्षरों के योग से सिद्ध, वैदिक, तथा लौकिक शब्दार्थ तत्वों से परिचय कराया है । तपस्वी और प्राचीन ऋषियों के वेद मंत्र स्वतःसिद्धत्व ज्ञान से दिव्य भाव को प्राप्त किया था । इस प्रकार हजारों वर्षों के पूर्व ही श्री कुमुदेन्दु मुनि ने दिव्य ज्ञान से केवल अंक तथा रेखाओं से ही इस ग्रंथ को प्रकट किया था और यह उस काल से आज तक गुप्त ही था। श्री यल्लप्पा शास्त्री जी के ३० वर्षों का अविश्रांत परिश्रम सफल हो ऐसी कामना करता हूँ। स्याद्वाद भिष*मणि एम. यल्लप्पा शास्त्री श्री भगवत् कुमुदेन्दु मुनि -
दिगबर जैनसमाज, उसमें भी दक्षिण देश के इस समाज में उसमें भी कर्नाटक जनपद में विश्व विख्यात अनेक दिगबर जैन मुनि आये-गए । उनके जाने के बाद भी उनके अद्वितीय, अनुपम, अमूल्य, अन्यत्र तथा अलभ्य साक्षात जिनवाणी-दिव्य वाणि को, परंपरा से हम अपने वारिसों के लिए घर- संपत्ति के छोडने की भाँति इस ज्ञान सागर
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