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________________ सिरि भूवलय स्वर्णवादः - इस प्रकार यदि रस सिद्धि हो तो इस रस संयोग से दुलह स्वर्ण रूप में परिवर्तित होगा ऐसा २४ तीर्थंकरों ने रससिद्धि के लिए ही अलगअलग २४ वृक्षों के नीचे बैठ कर तपस्या कर सिद्ध बने, उन तीर्थंकरों के द्वारा बैठ कर तपस्या किए गए वृक्षों का विवरण करते हैं । इन वृक्षों के पुष्पों, पत्तियों और फलों के रस ही रससिद्धि के कारण हैं ऐसा कहते हुए और भी कुछ प्रकार के रससिद्धि वस्तुओं का विवरण देते हैं । रसवृक्षः तीर्थंकरों के नाम तथा उनके तपस्या किए गए वृक्षों का क्रम इस प्रकार १) वृषभ - वट २) अजित - सप्तवर्ण ( कोंपल पत्तो वाला केले का पेड), ३) शंभव-शाल्मलि, ४) अभिनंदन-सरल, ५) सुमति - प्रियंगु, ६ ) पद्मप्रभ - कुटकि, ७) सुपार्श्वशिरीष, ८) चंद्रप्रभ नाग, ९) पुष्पदंत - नागफण (अक्ष), १०) शीतल - बेल्लवत्त (धूलि), ११) श्रेयांस-मुत्तुग(तुंबुर), १२) वासुपूज्य- पाटलि, १३) विमल-नेरिळे, १४)अनंतअश्वत्थ(अरळी,पीपल) १५) धर्म-दधिपर्ण, १६) शांति - नंदि, १७) कुंथु - तिलक, १८) आर - बिळिमावु (सफेद आम) १९) मल्लि-कंकेलि, २०) सुवर्त - चंपक, २१) नमि - वकुळ, २२) नेमि - मेषश्रुंग, २३) पार्श्व - दारु, २४) महावीर - शालि । इन वृक्षों को सिद्धप्रद वृक्ष कहते हैं । इन जिनवृक्षों के अतिरिक्त केदगे, पादरि, गिरिकर्णिके, मादल (अनार) आदि के पुष्परस - फलों से रस बंध रसमर्दन, रसाग्निजय, आदि विवरणों की जानकारी देते हैं । सिरि भूवलय में वैद्य पद्धति को आठ रीति से कहा गया है :- १) रामौषदर्धि, २) क्ष्वेळौषदर्धि, ३) झल्लौषदर्धि, ४) मलौषदर्धि, ५) विष्टौषदर्धि, ६) सर्वौषदर्धि, ७) आस्याविषर्धि, ८) दृष्टिविषर्धि आदि आठ प्रकार हैं। 396
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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