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-( सिरि भूवलय )
२. ब्राह्मो, उवनानि, उपरिका, वराटिका, खरसापिका, प्रभारात्रिका, उच्चवारिका,
पुस्तिका, भोगयवत्ता, वेदनरिका, निन्हरिका, अंक, गणित, गांधर्व, आदर्श, महेश्वरी, दामा, बोलिदि (५-१४६-६०)
सर्वज्ञ सूत्र
इन अंक लिपियों के नाम श्वेतांबर अंगग्रंथ सूत्रकृतांग,समवाय पन्नवन्न आदि में थोडा पाठ भेद के साथ उपलब्ध है । इतना ही नहीं सिरि भूवलय में यह ___प्राकृत, संस्कृत, द्राविड, आन्ध्रा, मलेयाळ, गुर्जर आदि अनेक भाषाएँ में भी है ऐसा यहीं कहा गया है। इसमें सिरि भूवलय के नाना गतियों को बंधों को बताया गया है साथ ही उनको पढने का प्रयत्न करना चाहिए ऐसा खुल कर कहा गया है । तीर्थंकर के वचनानुसार सर्वभाषामयी भाषा को पूर्ण रूप से समझने के लिए निम्न लिखित चार बुद्धियों की आवश्यकता है ऐसा जिनागम का विचार
१. कोष्ट बुद्धिः- संख्याबीज १ से लेकर ९ तक गुणवृद्धि- ह्रास क्रमानुसार सकल
पर्यायों को जान कर ९२ पृथक अंकों तक, गणित गुणित भागलब्ध प्रमाण
के सही उत्तर को तुरंत जान लेने की समझ २. बीज बद्धि:- अनेक संख्यांकों के बीज संख्या को त्तक्षण पहचान कर उससे
प्रकट होने वाले अनेकानेक साहित्य विषयों को समझने की समझ ३. पदानुसारिणी बुद्धि:- ग्रंथ के एक पदसंख्या को जान कर उससे उस ग्रंथ
के प्रकटनों को सही रीति से समझ कर व्यक्त करना ४. संभिन्न श्रोतृ बुद्धि:- अनेक भाषा-भाषियों के व्यवहार के अनेक विषयों को,
पशु-पक्षी आदि जीवों के एक काल में उच्चारित अक्षरात्मक-अनाक्षरात्मक शब्द-वाक्यों को अलग-अलग समझ कर विवरण करना ।
इस प्रकार की समझ स्वयं को तीर्थंकर समझनेवाले, इसे जो केवली (केवल ज्ञान अर्थात सर्वज्ञत्व) हैं वे पूर्ण समझ कर भक्त जनों के लिए से विवरित करते थे ऐसी कुमुदेन्दु भी अचानक, चाणक्य, जानकारी देते हैं । इसे गणित क्रमानुसार समझने की रीति को विवरित करते हैं ।
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