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सिरि भूवलय
शब्द बन कर आगे बढते हुए अंत में ६२ पृथक अंकों के बराबर शब्द राशी उत्पन्न होगी । दो ध्वनि संयोग में, एक पुनरुक्त के अंत में ६३ पुनरुक्त हो कर छोडे बिना इस राशी को अपुनरुक्त कह कर स्पष्ट रूप से कहा गया है । इस क्रमानुसार जग के समस्त शब्द राशी उत्तपन्न होती हैं इसे कुमदेन्दु
गिरिनंददोळरवत्नाल्कु “ अनुलोम” । दारिय “प्रतिलोम " क्रमद । हारव अंशद, भंगदिं गुणिसलु । नेर लब्दांश प्रमाण ।
मरळि अरवलाल्कं अरवत्मरिं गुण । बरलेरळ मूर सोन्ने नाकु ॥ विरचिसे ओंदेरळ मूरू एंदेने आरु । सरभागहारदिं वसु ॥ इस प्रकार विवरित करते हैं।
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इस चक्रक्रम में ६६ अर ( पहिये की नाभि और नेमि के बीच की आडी लकडी या तीली (जिससे अनेक शब्द समूह बनेगे ) तक शब्दराशी को गिन कर गुणित कर रखा गया है । सिरि भूवलय में इस चक्र को नारायणास्त्रचक्र, सुदर्शन चक्र, शब्दागम चक्र आदि नाम से संबोधित किया गया है। इस चक्र प्रमाण को सिरि भूवलय में ५,१०,३०००० चौकोर खाने हैं कहा गया है । इस चक्र के प्रमाण को कवि इस प्रकार कहते हैं
धर्मध्वजदरोळु केत्तिद चक्र । निर्मलदष्ट हुवुगळं ॥ स्वर्मन दळगळैवतोन्दु सोन्नेयु । धर्मद कालुलक्षगळे ॥ आपाटियंकदोळैदु साविर कूडे । श्री पादपद्मांगदल । रूपि अरूपियादोण्दरोळ पेळुव । श्री पद्धतिय भूवलय ।।
सिरि भूवलय भी ८६ पृथक अंकों के प्रतिलोम बन कर ७१ पृथक अंकों के अनुलोम बन कर क्रमसमीचीन के अनुसार घट कर आए हुए शेषराशी है इसी मे से सैकड़ों हजार ग्रंथ प्रकट होने के प्रतिलोम अनुलोम संख्या निरूपण को कहा गया है और यहीं पर रेखागम - वर्णागम में भी इसको बराबर समझने की पद्धति का विवरण किया गया है।
प्रतिलोम क्रमानुसार संख्या का प्रारंभ नौ को इसी से गुणा कर बढे तो “गर " (शतरंज मे पासा ऐंकने पर आने वाली संख्या) ५१ आने पर “ ह - क" भंग ही
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