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(सिरि भूवलय
184, 46, 74, 40, 73, 70, 65, 51, 613 + 88 =
अथवा गणितांक का मूल २ को ७ बार प्रस्तार क्रम के अनुसार गुण वृद्धि करे तो भी यही अंक प्राप्त होंगे।
इन संख्याओं मे १ को घटा कर, उसे जैन प्रक्रिया के अनुसार अंगबाह्य के लिए अलग कर के, इस संख्या गणित को कुमदेन्दु इस प्रकार कहते हैं
मितहितवैदोन्दारोंदैदैद । मतवादोंभथनोरेळ ॥ सतत मूरेळु सोन्नेयु नाल्नाल्केळु । हितवारु नाल्नाल्केंटोंदु ॥ यशकाव्य वि कदोळगोंदं कूडलु । रसदरवनाल्कंक भंग ।
एसेवक्षर्गळोळगंगभाह्यके ओन्दु। कुसियिसे सर्वभूवलय ॥ सप्त भंग
__ इनको ह-क भंग कहकर ,इस हकवु ह -६०, क-२८ मिलकर, उपरोक्त कहेनुसार २० अंको को आडे में जोडने से ८७+१=८८ कह, सकल वर्ग मूलाक्षर में सात भंग है ऐसा कुमुदेन्दु कहते हैं। यहाँ पर उनका कथन इस प्रकार है
हकवु द्विसंयोगदोळगे इप्पतेन्टु। प्रकटदोळरवत्तं कूडे ॥ सकलांक दोळु बिट्ट सोन्नेय एंटेन्टु । सकलागम ऐळु भंग
0 |
४६
५५+
६४
+१
0
४७
+
0
+
له سه
+
१० १९ २८ .. ३७ ११ २० २९ ३८ १२ २१ ३० ३९ १३ २२ ३१ ४० १४ २३ - ३२ ४१ १५ २४३३ ४२ १६ २५ ३४ ४३ १७ २६ ३५ ४४ १८ २७ ३६ ४५
३ ४ ५ ६ ७ ८ ९
+५
४८ ४९ ५० ५१ ५२ ५३ ५४
mo 1
५६+ ५७+ ५८+ ५९+ ६०+ ६१+ ६२+ ६३+
+६
+७
+८
+९
387