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( सिरि भूवलय
२. प्रजामत २५-५-१९५२
“भूवलय सिध्दांत ग्रंथ परिचय” नाम के इस ग्रंथ को पंडित यल्लप्पा शास्त्री विवरित करते हुए इस महाग्रंथ की रचना में गणित को क्यों आधारित बनाया गया है, विवरित करते हैं ३. प्रजामत १-६-१९५२ _ “सर्वमतों का समन्वय ही भूवलय सिध्दांत का ऐकैक लक्ष्य है” तथा “कन्नड भाषा में इस महा ग्रंथ की रचना का क्या कारण है" इस शीर्षक के अंतर्गत लिखे गए लेखन में सर्वमत का समन्वय ही इस महाकृति का लक्ष्य है, कहा गया है। ४. जिनवाणि ५-९-१९५२
भूवलय सिध्दांत इसकी विशेषाध्यनादि की आवश्यकता
यह ग्रंथ इस बात का प्रतिपादन करता है कि, इसमें प्रतिपादन करने के विषय ही नहीं आने के कारण, “यदिहास्ततदन्यत यन्नेहास्तन तत्क्वचित” इस महाभारत की युक्ति को कहना ही पडेगा। जो इसमें कहा गया है वह चर्वितचर्वण रूप से दूसरे स्थान में भी विवरित हुआ है और जो इसमें नहीं है वह किसी और स्थान पर होना असंभव है अर्थात इसमें वैज्ञानिक रूप का इस २०वींसदी के मानव विनाशकारी बम की प्रतिक्रिया के साथ सकल अध्यात्म शास्त्र समाहित है ऐसा घंटाधोष के साथ कह सकते हैं परन्तु इन सभी को केवल संख्या प्रमाण से ही निर्धारित करना है अर्थात संख्या समुदाय के द्वारा बंधे हुए चक्रादि बंधों से किसी भी शास्त्र को किसी भी भाषा को पाया जा सकता है। ५. प्रजावाणि २६-५-१९५३ ___पंडितो को अपने चमत्कार से दंग कर जिज्ञासा को उत्तपन्न करने वाला सिरि भूवलय
हमें ज्ञात कुछ भाषाओं के नाम नीचे दिए हैं