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-सिरि भूवलय
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उ सप्तम् अध्याय उपपाद शाय्येय मारणान्तिकवाद । सफलद त्रस लोकदन् क* ॥ दुपरिम लोक पूरणदळतेयोळिह । उपमेय त्रस नालियन्क वरद समुद्घातदोळु लोकपूरण। सरिदोरि बरलात्म रूपु। दो र* एताग अ इ उ ऋ ए ऐ ओ औ स् वर। बरेयलागद उ भूवलय वाद वय्खरियोळु साधिसिदात्मन । साधनेयडगिदयोग ॥ मोदव ता* गुव स्याद्वाद सिद्धिय । आदिगनादिय योग दरुशनशक्ति ज्ञानद शक्ति चारित्र । वेरसिद रत्नत्वर* व ॥ बरेयबारद बरेदरु औदबारद । सिरिय सिद्धत्वद भूवलय परिशुद्धरात्म भूवलय (निर्मलद) ॥५॥ अरहन्त रूपळिदिरुव
॥६॥ गुरुवु सद्गुरुवाद नियम हरि विरन्चिगळ सद्वलय ॥८॥ निरुपमवागिह उपमा
॥९॥ सिरि सिद्धरूपिन परम अरहन्तराशा भूवलय
॥११॥ परमाम्रत सिद्ध निलय ॥१२॥ पुरुदेवनोलिद श्री निलय हर शिव मन्गल वलय ।।१४।। बरेयलागद चित्र सरल
॥१५॥ करुणेय फलसिद्धि निलय परिपूरण सुखदादि वलय ॥१७॥ गुरुपरम् परेयाशा वलय
॥२८॥ धरसेन गुरुविन निलय परमात्मरूपिन निलय ॥२०॥ बरुव कालद शान् ति निलय ॥२१॥ इरुव वस्तुवनोळ् प बुद्ध
मरणवागद जीव वरद
॥२३॥ परमात्म सिद्ध भूवलय । मान मायवु लोभ क्रोध कषायगळ् । तानवप्अ हदिनारु बन्गह* ॥ तानल्लि बिट्टोडे निजरपदोळात्म । आनन्द रूपनागुवुदम् रत्न मूरर रूप धरिसिद आ शुद्ध । नूत्नान्तरन्गद वरश्री ॥ यत्नदिम् बन्दसद्धर्म साम्राज्यद । नित्यात्म रूपवी लोक णवदन्क परिपूर्णवागिसिदरहन्त । अवनिगे सिद्धत्व रीति ॥ अवतारदादिये लोकाग्र मुक्तिय । नवमान्क प्राप्तिये लोक ननु लोकद रूपपर्याय होन्दलु । हरि हर जिनरेम्ब सर स* ॥ तिरेयग्र लोकाग्र मुक्तिय साम्राज्य । हरुषद लोकपूरणवु तिरेयु रूपनु होन्दिदात्मन पर्याय । विरुवाग हदिनाल्कु सर्*व ॥ वर साधु पाठक आचार्य ई मूरु । गुरुगळन्कवु नवपदवु यशदग्र सर्वस्ववा समुद्घात । दिशेयग्रवेनिसिद सर्व* ॥ यशवेल्ल ओम्दाद मूर्तिये जिनबिम्ब । हसनाद बिम्बदालयवु
वशवाद सद्धर्म लोक ॥३१॥ यशद दिव्यद्वनि शास्त्र ॥३२॥ रस सिद्धि नवकारदर्थ विषहर सौख्यानक नवम ॥३४॥ असमान सिद्ध सिद्धान्क ॥३५॥ कुसुमायुधन गेल्दन्क यशश्वतिदेविय पतिय ॥३७॥ यशद सुनन्देय पतिय . ॥३८॥ रसऋषि वृषभनाथान्क
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