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(सिरि भूवलय)
यावाग दोरेवुदो आग अनेकान्त । ताविन नयमार्ग दोरेये ॥ नावा य*श होन्दे जयनत्व लाभद । सावकाशवे हदिनाल्कु
॥१६२॥ आ विध योगराहित्य ॥२६३।। श्री विश्वदग्रवय्कुन्ठ
॥१६४॥ कावदे कय्लास मुक्ति ॥१६५॥ श्री वीरवाणिय विद्ये ॥१६६।। नावु बेकेन्नुव सिद्धि ॥१६७॥ कावन्क सत्यद लोक ||१६८॥ पावन परिशुद्ध लोक ॥१६९।। सावु हुटुगळिल्लदिह श्री ॥१७०।। भाव अभाव राहित्य
||१७१।। नीवुगळाशिप मुक्ति
॥१७२॥ ई विश्व काव्य भूवलय ॥१७३।। हरि हर जिन धर्मदरितु मूरारमूरु । सरसिजदलदार म्* ओम् । बरुवन्क गणनेय मूरु कालदोळ् कूडे। परिदु बन्दिह काव्य सिद्धि ॥१७४।। वशवागे ओमबत्तु कामदम् जनरिगे । हसिवु बायारिके निद्र् अ* ॥ देसेगेटु हदिनेन्टु इत्यादि भवरोग । हेसरिल्लदन्ते होगुवदु ॥१७५॥ नवदन्क सिद्धिय करण सूत्रामर । दवयव सर्ववु व स्*य । सविय भाषेगळेन्टोम्देळर वस्य । अवुगळे मूरारुमूरु
॥१७६॥ तिरेयु कालगळु ई बरुव मूरुगळलि । हरिव भव्यर भवदभ य* ॥ सरुवार्थसिद्धि सम्पदद एरडु भव । परिशुद्ध जीव स्वभाव
॥१७७॥ परदुगेय्यलु बन्द लाभ ॥१७८॥ अरहन्त रूपिन लाभ
॥१७९॥ करुणेय मारिद लाभ
॥१८०॥ गुरु हम्सनाथ सन्मार्ग ॥१८१।। अरहन्तरडरिद मार्ग
॥१८२॥ चिरकालविरुव सौभाग्य ॥१८३।। सरुवराराधित धर्म ॥१८४।। गुरु परम्परेयादि लाभ
॥१८५।। धरसेन गुरुगळ अन्ग ॥१८६।। - हरुष वर्धनरादि भन्ग ॥१८७॥ मरण कालदे सिद्ध कवच ॥१८८॥ हरिहर सिद्ध सिद्धान्त ||१८९||
अरहन्तराशा भूवलय
॥१९०|| तत्वार्थसूत्र महार्थ प्रसन्गद । सत्यार्थदनुभव मू*रु ॥ रत्न प्रकाश वर्धन दिव्य ज्योतिय । तत्व पळार समन्वयद
॥१९॥ त्रितेय सान्गत्द रागदोळडगिसि । परितन्द विषयगळेल ल* ॥ अरहन्त मुखपद्मवेने सर्व अन्गदिम्। होरटु बन्दिह दिव्यध्वनिय ||१९२॥ चदुरिन अरी भूवलय सिद्धान्तदोळ् । हुदुगिसि पेळ्ददिव्यग्र | पद पदद्मरदन्क अन्कदरेखे । अदर झेतरगळ स्पर्शनव ।१९३॥ निकाल कालद अन्तर भावद । कोनेगल्पबहुत्व विन्तहर* || जिन धर्मवदु मानव जीवराशिय । घन धर्मवागिसिदनक
।१९४॥ मनुजरोळयक्य वप्पन्द ॥१९५॥ दिन दिनप्रेम वुध्यन्ग ॥१९६॥ घन दुष्कर्म विध्वम्स ॥१९७॥ जिनशास्त्र वेल्लगैम्बन्ग ॥१९८॥ विनयवेल्लरिगे समान्ग
॥१९९।। जनपद नाडिन सन्ग । ।।२००॥ जनरिगयदने काल (भन्ग) दन्ग ॥२०१।। कोनेगालगाररोळु इल्लदन्गे ॥२०२।। एनुवन्गधर ज्ञानरन्ग
||२०३॥ जनरिगे (बहअरी) वशवाद धर्म ॥२०४॥
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