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(सिरि भूवलय
॥३७॥ ॥४०॥ ॥४३॥ ॥४६॥ ॥४९॥ ॥५१॥
॥५२॥ ॥५३॥ ॥५४|| ॥५५॥ ॥५६॥
सुनयदुर्नयवडगिहुदु ॥३५॥ जिनधर्मवदु मानवर
॥३६॥ तनुवनेल्लव होक्डबहुदु मनदोषवनु कोल्लुवदु
॥३८॥ घन भाषेगळ लेककबहुदु ॥३९॥ धनद सम्पदवेल्ल बहुदु मनुजर मोक्षकोय्युवदु ॥४१॥ तनियाद भाषेगळिहुदु
॥४२॥ कोनेगे मतगळकूडिपिदु जिनमार्गदणूव्रत बहुदु ॥४४॥ घनवादे नूहदिनेन्टु
॥४५॥ जिनवरीमान भाषेगळ ननेकोनेवोगिसुव भाव ॥४७॥ जिनर भूवलयदोळिहुदु
॥४८॥ घनकले अरवत्तनाल्कु तनगे ताने तन्नोळगे
॥५०॥ जनिसितुम्बिरुव भूवलय भूवलयद सिदधान्तद अन्कवनम् । तीविकोन्डा अक्षरद ॥ पाव करेलगे मूरारु मूरर । आ विश्वधर्मवेल्लवनु पशगान्डुद्वय्ताद्वयत (वनेललव) अनेकानत। रसदोळ ओमकारदम कम।। यशवादकारदोनदिगे बेसेदिह। होसदादनादिय गरनथ लव मात्रवादरू भेदवम तोके
दवम् तोरदे । शिव विषण जिन बरमह भू पा* ॥ भवभय हरिसेम्ब रत्न मूरनकदे । नवकयलासवयकुन्ठ यशसत्यलोकवामूरन्कदग्रद । सुसौभाग्यदध्यात्मवन ॥ प*सरिप समवसरणदिन्द होर बन्दु । दिशेगळ्हत्तनु व्यापिसिरुव महावीरवाणि येम्बुदे तत्वमसियागि । महिमेय मन्गलवदु प्*रा।। हत्वव अणुविनोळ् तोरुव महिमेय। वहिसिहदिव्य प्राभूतद
महसिद्धि काव्यवेनदेनिप ॥५७॥ सहनेयम् दयेयोडवेरेसि । ॥५८॥ महिमेय समतावाददलि सिहि समन्वयदोडवेरेसि
॥६०॥ कहियनकवनु कळेदिरिसि ।।६१।। महिय भूवलयदोळ् वहिसि सहनेय विद्येयोळ् कूडि ॥६३।। षहदन्कवदनेल्ल गुणिसि ॥६४॥ महिमेय भाग सम्ग्रहिसि इह परवेरडरोळ् कटि ॥६६।। रहमदनकव नेलेगोळिसि
॥६७॥ वहिसिद धरमदोळ इरिसि छह खन्डदागमविरिसि
॥६९।। णहदनक अपुनरक्त लिपि ॥७०॥ टहवद तिरुगिसि बिडिसि गहनद विषयव वहिसि ॥७२॥ इहदोळु मोक्षव वहिसि
॥७३॥ अहमिन्द्र पदविय सहिसि महावीर सिद्ध भूवलय
॥७५।। महिमेय त्रयत्न वयल दोषवु हदिनेन्टु राशियागिर्दाग । ईशरोळ भेद तोरुवद् ॥ राशि रत्नत् स्यदाशेय जनरिगे । दोषवळिव बुद्धि बहुदु । सहवास सम्सारवागिप काल । महिय कळतले तोरुवदु ।। मह णा*णावरणीय दोषवदळियलु । बहु सुखविह मोक्षवहुद् विष हरवागलु चय्तन्यवप्पन्ते । रससिद्धि अम्रुतद श* ति ॥ यशवागे एकान्त हटवदु कट्टोडे । वशवप्पनन्तु शुद्धात्म रतुनत्रयदे आदियद्वयत । द्वितीयवु द्वयत वेम्बन् क* ॥ युतीयदोळनेकान्तवेने द्वय्ताद्वय्तव । हितदि साधिसिद जयनान्क
॥५९॥ ॥६२॥ ॥६५॥ ॥६८॥ ॥७ ॥ ॥७४॥ ॥७५||
॥७७॥
७८॥ ॥७९॥ ।।८०॥
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