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सिरि भूवलय
अद्भुत और विस्मयपूर्ण सिरिभूवलय
सिरिभूवलय विस्मयों और प्रयत्नों की एक खान है। इस कृति के लिए आवश्यक ध्यान और श्रम, संशोधन और अध्ययन उपलब्ध होने पर सिरिभूवलय संसार के आश्चर्यों मे एक गिना जा सकता है। एक ग्रंथ मे ७१८ भाषाओं में कृतियों की रचना की गई है यही एक अद्भुत आश्चर्यजनक तथ्य है। इन सभी को चक्रबंध संख्या लिपि मे रचा गया है। केवल ६४ संख्याओं में इसे रचने की साधना अपने आप में एक महत्वपूर्ण कार्य है, यह ज्ञात होने पर और इसके अध्ययन में आने वाली समस्याओं का परिहार करने पर, विविध ज्ञान क्षेत्रों से संबंधित कृतियों के प्रकट होने का विचार करने पर मेरे मन में तीन विचार कौंधते हैं । १- मनुष्य के मस्तिष्क की अद्भुत रचनाओं में यह एक है ।
२- इस रचना मे समाहित प्रतिभा आधुनिक कंप्यूटरों से भी प्रभावी और बेहतर है। इसकी समस्त सामाग्री पुस्तक का रूप धारण करने से पहले, कुमुदेन्दु यति ने अपने मस्तिष्क में व्यवस्थित रूप से अंकित किया होगा न ।
३- १२वीं शताब्दी से पहले की यह कृति जब सम्पूर्ण रूप धारण करेगी पर उस समय के बारे में अनेकानेक ज्ञानवर्धक जानकारी हमें उपलब्ध हो सकती है।
इस ग्रन्थ की रचना जितनी विस्मयपूर्वक है उतना ही विस्मयकारी इसका गुप्त चरित्र (इतिहास) है । हमारे देश का यह सौभाग्य है कि यह ग्रंथ आज तक सुरक्षित
है।
प्राचीनतम काल से, पंडित यल्लप्पा शास्त्री कर्लमंगलम श्रीकंठैय्या, श्री के. अनंत सुब्बाराव जी से लेकर श्री एम. वाय. धर्मपाल जी तक इसे संरक्षित करने वाले समस्त व्यक्तियों को हम कृतज्ञता अर्पित करते हैं । १९५३ में प्रथम सिरि भूवलय ग्रंथ प्रकट होने पर भी यह और भी अधिक विस्तृत रूप में डॉ टी. वी. वेंकटाचल शास्त्री जी के विद्वतपूर्ण प्रस्तावना के साथ कन्नड भाषा के हाथ लगने के लिए अर्धशतमान की प्रतीक्षा करना एक विषादमय स्थिति है। पुस्तक शक्ति के श्री वाय. के. मोहन जी और उनकी बहू चि. सौ. वंदना राम मोहन,