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- सिरि भूवलय
॥१७९॥
रस भाव काव्य सन्दर्भदुचित नुडि । यशस्वती देवइ यम् म*गळ ॥ होसदाद रीति देसिकदरिकेयनेल्ल । हेसरिटु कलियलु बहुदु
॥१६२।। यशस्वतियम्मन तन्गि सुनन्देय । बसिरलि बन्द अन्गज न* ॥ यशद कामायुर्वेददोळ् त्यागव । रससिद्धियिम् काणबहुदु
॥१६३॥ णव मन्मथरोळगादिय मन्मथ । अवनादि केवलिनम्अ ह* ॥ सुविशाल कायद परमात्म रूपनु । अवनिन्द सन्दरि कन्डु
॥१६४॥ अवधरिसुत तन्गिर्दन्क ॥१६५।। छवियोळु काण्व सत्यान्क ॥१६६॥ नवमन् मथरादियन्क
॥१६७॥ भवभय हरण दिवयानक ॥१६८॥ अवरोळु प्रतिलोमदन्क
॥१६९॥ अवनु कूडलु ओम्बत्त् ओमदु ॥१७०॥ नवकार मन्त्रवु ओमदु .. ॥१७१॥ सवणर धर्मान्क औमदु ॥१७२॥ सवियागिसिरुव भूवलय
॥१७३॥ अनलोम-१-२-३-४-५-६-७-८-९ प्रतिलोम्-९-८-७-६-५-४-३-२-१ लब्धान्क-१-१-१-१-१-१-१-१-०ओम्बत् ओमदु णिजद हत्तनु ओम्बत्तागिसिदन्क।अदरनुलोमान्क पद प* |अदरलि बरुव सोन्नेय बिट्ट ओम्बत्तुापदगळ काव्य भूवलय
॥१७४॥ मिक्किह ऐळ्न्ऊरुनझर भाषेयम् । दक्किप द्रव्यागमर* ॥ तक्क ज्ञानव मुन्दकरियुव आशेय । चोक्क कन्नाड भूवलय
॥२७५॥ त्रुणनु दोर्बलियवरक्क ब्राहियु । किरिय सौन्दरि अरि ति* र्द ॥ अरवत्नाल्कनर नवमानक सोन्नेय । परियिह काव्य भूवलय
॥१७६॥ सरमगि कोष्टक काव्य
॥१७७॥ गुरुगळिम् परितन्द गणित ॥१७८॥ गुरुगळयवर गणितान्क अरहन्तरोरेदिह गणित ॥१८०॥ सिरिQभेश्वर गणित
॥१८१॥ गुरुवर अजित सिद्धगणित ॥१८२।। परमात्म शम् भव गणित ॥१८३॥ सुरपूज्य अभिनन्दनेश
॥१८४॥ सुर नर वन्द्य श्री सुमति ॥१८५॥ तिरियन्च गुरु पद्मकिरण
॥१८६॥ नरकर वन्द्य सुपाव ॥१८७॥ गुरुलिन्ग चन्द्रप्रभेश । सिरि पुष्पदन्त शीतलरु ॥१८९॥ गुरु शरीयाम्स जीनेन्द्र ॥१९०॥ सरुवञ् वासुपूज्येश ।
॥१९॥ अरहन्त विमल अनन्त
॥१९२॥ हरुषद शरीरधर्म शान्ति ॥१९३॥ गुरु कुन्थु अर मल्लि देव सिरि मुनिसुव्रत देव ॥१९५॥ हरि विष्टर नमि नेमी
॥१९६॥ वर पाव व
॥१९७॥ गुरु माले इप्पत् नाल्कन्क
॥१९८॥ तरुण मन्मथनारु सोन्ने सोन्ने एरडु । सरियोम्बदु अन्तर भो*धासरस काव्यागमदरवत् नाल्कार। विरुव ई काव्यवु ऐदु
॥१९९।।
शिरसिनन्तिह सिद्धराशि (भूवलय) ॥२००॥ म्नविडेओम्बत्ओम्दुसोन्नेयु एन्टु। जिनमार्गदतिशयध ॥ वेनुत स्वीकरिसलु नवपद सिद्धिया घन मर्म काव्य भूवलय
॥२०१॥ ५ ने ई ८०१९ अनुतर् १२००६=२००२५ अथवा अ-ई६४,४२७+ई २०,०२५=४८,४५,२
॥१८८॥
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