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(सिरि भूवलय
॥१३८।। ॥१३९
ऊनविल्लद ज्ञन ओम्दन्क हुटि । श्रीनिकेतननन्गदुप रि* । आनतवागिह मुक्कोडे पूमळे ॥ भानुमन्डलद भूवलय वशगोन्ड ‘अ’आदि मन्गल प्रात। रसद्अ अक्षरवदु ता* नु॥ यशद् आरुसाविरद ऐनूरर्वत् ओमदु । रसदेरडनेय अन्तरदोळु यशद् ऐदन्टेळेळ् अन्तरद ॥१४०॥ दिशेयधिकारदोळ बरप
॥१४१।। रसदनक गणनेयक्षरद यशदे कूडिदरे बाहन्क
॥१४३॥ रसदेन्टमूर् नाल्केरडु ओमदु ॥१४४॥ वशद साविर हन्ए अरेय दिशेयोळु बरुव चारित्र्य
॥१४६।। यशवदन्त् आगे 'आ' इदरोळ् ॥१४७॥ रसदन्तराधिकारदोळु रसदारद लेक्कगळ् ॥१४९।। कुसुमगळन्नु कूडिदरे
॥१५०॥ विष यशदनक काव्यद सिद्ध ॥१५२॥ रिषिवर्धमानर वाक्य । ॥१५३॥ रसदन्तरेन्ट्नाल्केन्ट् ऐळु ओम्दन्कवेप्प्तऐळ्एम्भत्ऐ । अम्मलु अन्तर न्* दरलि ॥ उमिदेन्ट्नाल्केन्टेळु बन्दन्क । सम्मतव् “आ” क्यभूवलय। आ(२) ६५६१+अन्तर् ७८४८=१४४०९
॥१४२।। ॥१४५।। ॥१४८॥ ॥१५१॥ ॥१५४॥
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प्राकृत -सक्रमवर्ति
आदिम सम्हणण जुदो समचउरस्सन्ग चारु सन्ठाणोम् । दिव्ववर गन्धधार ई पमाण ठ इद ओम नख ऊओ ॥
संस्कृत सक्रमवर्ति अविरलशब्दघनौघ् प्रकशापालित् सकलभूतलमलकलन्क्आ । मुनिभिरुपासिततिर्था सरस्वति हरुतुनो दुरितान् ॥२॥ ..
अ६५६१+अनतर ७७८५ = १४३४६+आ६५६१+अनतर ७८४८=२८७५५=२७=९
अथवा अ १४३४६+आ १४४०९=२८७५५=२७-९
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