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सिरि भूवलय
प्रकाशक के विचार
पुस्तक शक्ति हमेशा नए अन्वेषण में अपने आप को समर्पित करता रहा है । इन अन्वेषणों के परिणाम स्वरूप ही अनेक उदग्रंथ प्रकाश में आए हैं इस बार भी एक ऐसा ही ग्रंथ प्रस्तुत कर रहे हैं । जिसका नाम है कुमुदेन्दु गुरु विरचित सिरिभूवलय
सिरि भूवलय के विषय में विद्वानों के कई लेखनों में विविध ग्रंथों में यत्रतत्र विचार अवश्य प्रकट होतें रहे हैं परन्तु उसका संपूर्ण ग्रंथ रूप आज तक कहीं भी प्रकाशित नहीं हुआ था । मल्लिकब्बे ने लगभग ८०० वर्षों के पहले शास्त्रदान के पृष्ठ भूमि में इस ग्रंथ की ६ प्रतियाँ बनवाकर दान रूप में दिए थे । यही ग्रंथ सौभग्य वश विद्वान यल्लप्पा शास्त्री जी के हाथ आया फिर आगे चलकर इस पर विद्वानों के द्वारा शोध अध्ययनों से विविध स्तरों पर इस ग्रंथ ने अलग-अलग रूपों को पाया ।
कुमुदेन्दु मुनि द्वारा विरचित यह ग्रंथ अंकों पर आधारित होने के कारण इसे अंकाक्षर विज्ञान नाम से जाना गया । अंकाक्षरो से यह ग्रंथ निरूपित होने के कारण इसका विशेष महत्त्व है साथ ही इसी कारण इसका नकारात्मक स्वरूपं भी बनता है क्योंकि यह ग्रंथ लगभग ७१८ भाषाओं में रचित है ऐसा ज्ञात होने पर भी इसे सुलझा कर भाषाओं का पता लगाने में असमर्थ हैं । इस कारण इसमें प्रस्तावित अनेक अमूल्य विवरण आज तक प्राप्त नहीं हो सके हैं अतः इसके अनेक तथ्य व सत्य आज तक गोपनीय ही हैं ।
प्रस्तावित, सिरि भूवलय ग्रंथ में अन्तर्गत मौलिक विचार बाहुल्य शक्ति अनुसार बाहर लाने का प्रयत्न अब पुस्तक शक्ति कर रही है ।
वैसे हम कह सकते हैं कि आकस्मिक रूप से बेंगलोर में स्थित विमान कारखाने ने हमे एक मंच उपलब्ध काराया । हमारे साथ विमान कारखाने में कार्यरत हमारे सहयोगी श्री एम. वाय. धर्मपाल, और श्री प्रभाकर चेंडूर की साहित्य में आसक्ति ने सिरिभूवलय के कार्य के लिए स्फूर्ति प्रदान की । पंडित श्री यल्लप्पा शास्त्री जी के सुपुत्र श्री एम. वाय. धर्मपाल जी ने सिरिभूवलय के विषय में हमारे
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