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(सिरि भूवलय
१. ऊपर कहे गए १ से लेकर ६४ तक के अंक 'अ' से :: (फ़क) तक ६४
उच्चारण घोष बने हैं। उनमें २७ स्वर, ३३ व्यंजन, ४ अयोग वाह हैं। उन
सब की सूची आगे दी गई है। इस प्रकार यह एक अंकाक्षर विज्ञान है। २. सष्टि के आदि में ही अर्थात् अनादि काल से ही पशु, मृग, पक्षी, सूर्य,
चंद्र, नक्षत्र, वृक्ष, लता, सभी एक गणित के आधार से तथा तत्व के आधार पर निर्मित होकर विकसित होकर संसार के सभी देव मानव, पशु-पक्षी, क्रिमी-कीट आदि की बोलने वाली भाषा, उच्चारित समस्त शब्द ध्वनियाँ परमात्मा के द्वारा एक प्रकार के गणित के सिध्दांत के द्वारा दिव्यध्वनि बन कर पहले ही निर्मित हो चुकी हैं वही समस्त ब्रह्मांड के लिए आदि भगवद गीता बन कर (पुरु गीता) समस्त भाषाओं को समस्त धर्मों को, समाहित कर विकसित होती गई है इसे ही, श्री कुमदेन्दु आचार्य अंकाक्षर विज्ञान और चक्र बंधों के द्वारा बहुत समय पहले ही, आज के आधुनिक, नव सभ्यता
ने दुनिया को दिखाया है, ऐसा इस ग्रंथ के द्वारा जाना जा सकता है । ३. इसे सिरि भूवलय में आदि वृषभ तीर्थंकर अपनी पुत्रियों ब्राह्मी और सौन्दरी
को अंकाक्षर ज्ञान के रूप में शाखत संपत्ति प्रदान करते हैं। उसे वे अपने सहोदर भरत गोमट्ट को सुनाते हैं । उसी ज्ञान को भरत के बाद आने वाले सभी तीर्थंकर , फिर सभी आचार्य और फिर कुमुदेन्दु संसार को उपदेशित करते
हैं, ऐसा कहा गया है। ४. ऊपर कहे इस ग्रंथ के चक्रों में रहने वाले अंकों के लिए अथवा ध्वनियों
को बना कर उन्हें अगले पृष्ठ पर दिए बताए गए खानों में आने वाले श्रेणी बंध के द्वारा पढा जाए तो “अषट महापराति हारय” श्लोक से आरंभ होकर इस ग्रंथ के प्रप्रथम ७ सांगत्य पद्य एक चक्र में आते हैं । यह आज के प्रचलित ध्वनियों में न होकर संस्कृत, या अंग्रेजी लिपि में आने वाले उच्चारण घोष रीति के अनुसार एक रीति से स्वाभाविक शब्द क्रमानुसार लिखा गया
१०. इसी प्रकार शेष १२७० चक्रों को भी विविध बंध में पढा जाए तो ५९ अध्याय
के ६४८०० श्लोकों के मंगल प्राभृत नाम के प्रथम खंड के साहित्य का