________________
२.
सिरि भूवलय
संपादन कार्य में लगे हुए महनीय सज्जन के द्वारा अनुगमित विधि-विधानों के बारे में; कृति कर्त्ता के काल देश के बारे में; विशेष रूप से कर्ल मंगलम श्री कंठैय्या जी के वाद-विवाद और निर्णय के बारे में, इन सबका परिशीलन करने वाले विद्वानों को संतोष न मिलना।
३. प्रथम परिष्करण की कृति पाठ की शुध्दाशुध्दता को विमर्शित कर समझने में विद्वानों को अंक लिपि रूप के मूल ग्रंथ के हस्त प्रति आसानी से परिशीलन के लिए उपलब्ध न होना और अंततः परिशीलन के लिए अत्यधिक सहन शक्ति और परीश्रम की माँग ।
४.
मुद्रण के लिए तैयार और स्वीकृत अनंतर में मुद्रण करवा कर प्रकटित ग्रंथ के अधिकृतता के लिए श्री कंठैय्या जी के संपादकीय प्रयत्न और साहस को अत्यंत व्यैक्तिक और बहुशः दुर्बल भी
समझना ।
इस प्रकार कुछ संभावनीय कारणों से यह ग्रंथ विद्वानों और जन सामन्य के ध्यान को आकर्षित करने में असमर्थ रहा होगा। कन्नड इतिहासकार हो, साहित्य विमर्शदाता गोविन्दपै, ए. वेंकट सुब्बैय्या, के. जी. कुंदणगार, डी. एल. नरसिंहाचार, सेडीयापु कृष्ण भट्ट, आदि गण विद्वान हो इस ग्रंथ के विषय में कुछ भी न कहना एक आश्चर्य जनक संगति है। इस कारण कर्ल मंगलम श्री कंठैय्या जी को “ इस ग्रंथ के विषय में देश के विद्वानमणियों ने जिम्मेदार लोगों ने जो मौन 'और तिरस्कार धारण किया है, इस विषय में आज के कन्नडीगाओं को कुछ कहना ही होगा" ऐसा एक संदर्भ में लिखना पडा (प्रजावाणी २८-६-६४)।
कवि कुमुदेन्दु का काल, देश, जीवन वृतांत के विषय में वाद-विवाद के कारण इस ग्रंथ के विषय में विचार विमर्श करने वाले अन्य विद्वानों की लेखनी में अधिकतर समीक्षात्मक परिचय ही रहा; उस कारण से कन्नड भाषा साहित्य इतिहास में जिस प्रमाण में प्रचारित होना था प्रचारित नहीं हुआ। संशोधन मूल्य भी प्राप्त नहीं हुआ। अब समग्र ग्रंथ का प्रकटण और अनंतर में यह कार्य परिष्कृत रूप से आगे बढना होगा।
१९५३ का असमग्र परिष्करण का पठ्य और प्रस्तावना को आधारित कर स भूवलय का कवि काव्य विचार के विषय में आज तक के कुछ विचारों को यहाँ
127