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________________ सिरि भूवलय रचना होकर सन् ८१६ में संपूर्ण हुई । यह ७२ हजार श्लोक प्रमाण की रचना है । षट्टखंडगम का छठवाँ भाग महाबंध है। इसकी रचना भूत बलि ने ही विस्तार पूर्वक की है । महाधवल नाम से प्रसिध्द इसका ग्रंथ प्रमाण ३०-४० हजार के लगभग है, इस पर कोई विशेष टीकाएँ प्राप्त नहीं हुई हैं। धर सेनाचार्य के समीप समय में ही गुणधर नाम के एक आचार्य भी थे। जिन्हें भी द्वादशांग का परिचय था। इन्होंने कशाय प्राभृत की रचना की थी। इसके लिए आर्य मंक्षु और नाग हस्ती ने व्याख्यान किया था । यति वृषभ नाम के आचार्य ने चूणी सूत्र की रचना की थी। इस कशाय प्राभृत पर भी वीर सेनाचार्य ने टीका लिखना प्रारंभ किया था। २० हजार श्लोक प्रमाण की रचना होने तक उनका स्वर्गवास हो गया लगता है। तब उनके शिष्य जिनसेनाचार्य ने रचना को आगे बढा कर ४० हजार श्लोक प्रमाण में उसको सन् ८३७ में समाप्त किया। यही जय धवल टीका है। लगभग १२वीं सदी में रचित षट्टखंडागम की केवल एक ही संरक्षित हस्त प्रति दक्षिण कन्नड के मूडबिदरे के ग्रंथ भंडार में निक्षेपित ( गडा हुआ) था परन्तु आज अनेक संस्थाओं में प्रकट हुआ है । (१९३९-५९) धवल टिप्पणियों की रचना राष्ट्र कूट के अमोघ वर्ष नृप तुंग के शासनावधि में हुई थी (८१४ -७७)। इनमें उस समय के अन्य आचार्यों की टीकाओं का सार भी है। ऐसा विद्वानों ने जानकारी दी है। इस परंपरा को कुमदेन्दु ने अपने ग्रंथ के तेरहवें अध्याय के प्रारंभ में कहा है। यह प्रभाव सेन के द्वारा रचित पाहुडवम नाम के भाग तक दिखाई पडता है ( १ - १०७) । षट्टखंडागम सिध्दांत ग्रंथ के लिए विस्तृत और सुस्पष्ट टिप्पणियों के कारण इसे धवल ( जयधवल) नाम पड़ा होगा अथवा अमोघ वर्ष को अतिशय धवल नाम की उपाधि होने के कारण यह नाम पड़ा होगा। धवल ग्रंथों की रचना के पोषक होने के कारण अमोघ वर्ष को यह उपाधि मिली होगी। रचना को भूवलय / सिरिभूवलय नाम कुमुदेन्दु का अपनी रचना को यह नाम देने का क्या कारण है? भूवलय शब्द का अर्थ भूमंडल होने के कारण यह प्रदेश वाचक होने की संभावना कठिन 118
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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