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________________ 1/6 Praise of generous public charities and donations and other virtues of Nattala Sāhu, the Sārthavāha or internationally known big trader. Alhana advises the poet to meet him. जो सुंदरु वीया-इंदु जेम जो कुल-कमलायरु रायहंसु तित्थयरु पइद्वावियउ जेण जो देइ दाणु वंदीयणाहँ परदोस-पयासण-विहि-विउत्तु जो दिंतु चउबिहु दाणु भाइँ जसु तणिय कित्ति गय दस-दिसासु जसु गुण-कित्तणु कइयण कुणंति जो गुण-दोसहँ जाणइ वियारु जो रूव-विणिज्जिय मारवीरु जणवल्लहु दुल्लहु लोएँ तेम।। विहुणिय-चिर विरइय-पाव-पंसु।। पढमउ को भणियइँ सरिसु तेण।। विरएवि माणु सहरिस मणाहँ ।। जो तिरयण-रयणाहरण-जुत्तु।। अहिणउ बंधु अवयरिउ णाई।। जो दिंतु ण जाणइ सउ-सहासु।। अणवरउ वंदियण णिरु थुणंति।। जो प्ररणारी-रइ-णिव्वियारु।। पडिवण्ण-वयण धरधरणधीरु।। घत्ता- सो महु उवरोहे णिहयविरोहे णट्टल साहु गुणोहणिहि। दीसइ जाएप्पिणु पणउ करेप्पिणु उप्पाइय भव्वयणदिहि।। 6 ।। 1/6 अल्हण साहू द्वारा नट्टल साहू के दान और गुणों की प्रशंसा“जो (नट्टल साहू देखने में) ऐसा प्रतीत होता है, मानों दूसरा चन्द्रमा ही हो। संसार में उससे अधिक लोकप्रिय व्यक्ति दुर्लभ है। जो (नट्टल) अपने कुल रूपी कमलाकर (सरोवर) के लिए राजहंस के समान है, जो चिरसंचित पाप-धूलि को नष्ट करने वाला है, जिसने प्रथम तीर्थंकर को दिल्ली में प्रतिष्ठापित किया है, (अर्थात पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराकर मंदिर में विराजमान कराया है), उसके समान किसे कहा जाय? (अर्थात् किससे उसकी उपमा दी जाय?) जो हर्षित मन से बन्दीजनों को सम्मानित कर दान देता है, जो दूसरों के दोषों के प्रकाशन रूप विधि से वियुक्त (रहित) है, जो रत्नत्रय रूप रत्नों के आभरण से युक्त हैं, जो चार प्रकार का दान देता हुआ सुशोभित रहकर ऐसा प्रतीत होता है, मानों आकाश से कोई अभिनव-बन्धु ही अवतरित हुआ हो। जिसकी कीर्ति दसों दिशाओं की ओर भाग गई है, जो दान देते समय न सौ जानता है और न हजार। जिसके गुणों का कीर्तन कविजन भी किया करते हैं और बन्दीजन भी जिसकी स्तुति अनवरत रूप से किया करते हैं, जो गुण और दोषों का विचार जानता है, जो परनारी की रति में निर्विकार है, जिसने अपने रूप-सौन्दर्य से कामदेव रूपी वीर को भी जीत लिया है और जो प्रतिपन्न (स्वीकार किये हुए) वचनों की धुरा को (भार को) धारण करने में धीर-वीर हैं। घत्ता- इसलिए हे कविवर— “मेरे अनुरोध से (सभी प्रकार के-) विरोधभाव को छोड़कर तथा स्नेह पूर्वक जाकर भव्यजनों के हृदय में धैर्य उत्पन्न करनेवाले उस गुणनिधि नट्टल साहू को दर्शन अवश्य दीजिये। (6) 8:: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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