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________________ 3/6 3/7 3/8 3/9 3/10 3/11 3/12 3/13 3/14 3/15 3/16 3/17 3/18 3/19 3/20 4/1 4/2 4/3 4/4 4/5 छु कु णु फु फु कु कु कु कु कु छ ह 4/6 4/7 4/8 4/9 (45) (46) (47) (51) (48) राजा हयसेन के युद्ध-प्रयाण के आदेश एवं रणभेरी की गर्जना - (49) रण प्रस्थान के लिए व्याकुल योद्धाओं से उनकी पत्नियों की अभिलाषाएँ (50) - प्रयाण के लिए व्याकुल सुभट-पतियों के लिए उनकी पत्नियों के मर्मभेदी प्रतिबोधन (52) (53) (54) (55) (56) (57) (58) (59) (60) (61) (62) (63) (64) (65) (66) (67) (68) 4/10 (69) 4/11 (70) राजा रविकीर्ति का आक्रोश । वह यवनराज से पराजित होने पर अग्निप्रवेश की प्रतिज्ञा कर लेता है दूत का कथन सुनकर हयसेन आगबबूला हो जाते हैं राजा हयसेन यवनराज के प्रस्ताव की तीव्र भर्त्सना कर रण- प्रयाण की तैयारी करते हैं राजा हयसेन की वाणारसी से रणभूमि की ओर प्रयाण की तैयारी राजकुमार पार्श्व का यवनराज के साथ युद्ध करने का अपने पिता से प्रस्ताव यवनराज के साथ युद्ध में भिड़ने सम्बन्धी पिता-पुत्र के उत्तर- प्रत्युत्तर राजकुमार पार्श्व ने अपने पिता हयसेन को अपनी चमत्कारी शक्ति का परिचय दिया राजा हयसेन पार्श्व को यवनराज से युद्ध करने की स्वीकृति प्रदान कर देते हैं । पार्श्व का चतुरंगिणी सेना के साथ शुभ शकुनों के मध्य रण प्रयाण रण प्रयाण के समय पार्श्व के मार्ग में अनेक शुभ शकुन । एक सरोवर के किनारे उनका ससैन्य विश्रामः मनोहारी सन्ध्या-वर्णन सन्ध्या-वर्णन कृष्ण रात्रि का आलंकारिक वर्णन सुप्रभात - सूर्योदय का मनोहारी वर्णन चौथी सन्धि (पृष्ठ 68-93) पार्श्वकुमार का शत्रुओं को दहला देने वाला रण- प्रयाण (जारी) : पार्श्व का रण प्रयाण सुनकर यवनराज भी युद्ध भूमि के लिये प्रस्थान करता है। पार्श्व की रविकीर्ति से भेंट पार्श्व के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर राजा रविकीर्ति की सैन्य तैयारी रणबांकुरे महाभटों की दर्पोक्तियाँ से यवनराज के साथ युद्ध में कुमार पार्श्व का साथ देने के लिये दूर-दूर अनेक राजागण ससैन्य पधारे। पार्श्व द्वारा उनका सम्मान दोनों शत्रु-सेनाओं में तुमुल-युद्ध प्रारम्भ प्रचण्ड युद्ध-जनित धूलि ने पृथिवी को अंधकाराच्छन्न कर दिया तुमुल-युद्ध दोनों शत्रु सेनाओं में तुमुल-युद्ध वर्णन युद्ध की तीव्रता का वर्णन रण-प्रचण्ड राजा रविकीर्ति यवनराज की समस्त रण- साधन-सामग्री नष्ट कर देता है और उसे रणभूमि से खदेड़ देता है 52 53 55555 54 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 68 69 70 71 73 74 75 76 77 78 79 विषयानुक्रम :: 73
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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