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________________ 1/20 1/21 (21) सम्राट हयसेन (अश्वसेन) द्वारा स्वप्न-फल-कथनपार्श्व प्रभु का गर्भ में आगमन और जन्म-कल्याणक (22) (24) 2/4 2/5 2/6 (26) (27) (28) 2/7 2/8 (29) 2/9 दूसरी सन्धि (पृष्ठ 26-46) शिशु की अपूर्वता का वर्णनइन्द्र के लिये पार्श्व के जन्म-कल्याणक की सूचनाइन्द्र का देवों के परिवार के साथ वाणारसी की ओर प्रस्थानइन्द्र का देवों तथा देवियों के साथ वाणारसी में आगमनइन्द्राणी ने शिशु-जिनेन्द्र को इन्द्र के लिये सौंप दियावह देवेन्द्र जिनेन्द्र-शिशु को सुमेरु पर्वत पर ले जाता हैशिश-जिनेन्द्र का जन्माभिषेक-उत्सवइन्द्र ने जिनेन्द्र को बहुमूल्य विविध आभूषणों से विभूषित कियादेवों द्वारा उत्सव का आयोजन तथा शिशु जिनेन्द्र का नामकरणदेवों द्वारा स्तवनसमेरु-पर्वत से वापिस लौटकर इन्द्र ने जिनेन्द्र-शिश को उसकी माता को सौंपाशिशु-जिनेन्द्र के प्रति उसकी जननी की भावभरित कल्पनाएँदेवों एवं मनुष्यों ने हयसेन के राजभवन में जाकर जन्मोत्सव मनायाप्रभु पार्श्व की बाल-लीलाएँपार्श्व के बाल्यकाल का वर्णनबालक पार्श्व के शरीर की शोभा का वर्णनबालक पार्श्व की विविध कलाओं के ज्ञान-विज्ञान के प्रशिक्षण की सूचीकर्नाटक, हरयाणा आदि 25 देशों के पराक्रमी नरेश सम्राट् हयसेन के दर्शनार्थ तथा उन्हें बधाई देने हेतु उनकी राज्यसभा में आते हैं (30) (31) (32) 2/10 2/11 (33) 2/12 2/13 2/14 (34) (35) (36) (37) 2/15 2/16 2/17 2/18 (38) (39) (40) (41) (42) तीसरी सन्धि (पृष्ठ 47-67) अन्य किसी एक दिन राजा हयसेन की राज्यसभा में एक सन्देशवाहक (राजदूत) आता है :- राजदूत के लक्षणों का रोचक वर्णनकुशस्थल के राजा शक्रवर्मा को वैराग्य तथा राजा रविकीर्ति का राज्याभिषेक : वह रविकीर्ति राजा हयसेन के यहाँ एक सन्देश भेजता हैराजा रविकीर्ति द्वारा प्रेषित राजा शक्रवर्मा के वैराग्य सम्बन्धी सन्देश को पाकर राजा हयसेन शोकसागर में डूब जाता हैविवेकशील विद्वानों तथा सभासदों द्वारा राजा हयसेन को शोक त्याग करने का उपदेश। शोकाकुल रहने से हानियाँसन्देश-वाहक के अनुसार कालिन्दी-नदी के तटवर्ती जनपद का स्वामीयवनराजा रविकीर्ति से उसकी पुत्री का हाथ माँगता है और न देने पर उसे युद्ध की धमकी देता है। इस पर (43) 3/5 (44) 72 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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