SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साहू दिल्ली नगर का एक सर्वश्रेष्ठ सार्थवाह, साहित्य - रसिक, उदार, दानी एवं कुशल राजनीतिज्ञ । वह अपने व्यापार के कारण अंग, बंग, कलिंग, गौड, केरल, कर्नाटक, चोल, द्रविड, पांचाल, सिन्धु, खश, मालवा, लाट, जट्ट, नेपाल, टक्क, कोंकण, महाराष्ट्र, भादानक, हरियाणा, मगध, गुर्जर एवं सौराष्ट्र जैसे देशों में प्रसिद्ध तथा वहाँ राजदरबारों में उसे सम्मान प्राप्त था । वहाँ उसकी व्यापारिक कोठियाँ भी थीं। कवि ने इसी नट्टल साहू के आश्रय में रहकर 'पासणाहचरिउ' की रचना की थी। इस रचना की आदि एवं अन्त की प्रशस्तियों एवं पुष्पिकाओं में साहू नट्टल के कृतित्व एवं व्यक्तित्व का विशद परिचय प्रस्तुत किया गया है । अतः अल्हण नट्टल का पिता नहीं, मित्र था । पृथिवीराजरासो का श्रीमन्त शाह ही क्या नट्टल साहू था ? पृथिवीराजरासो में एक श्रीमन्त शाह' का उल्लेख आया है । पृथिवीराज चौहान जब राजकुमारी संयोगिता के साथ रंगरेलियों में आसक्त होकर राज्यकार्य की उपेक्षा कर रहा था और उसी समय उसके अनजाने में मुहम्मद गोरी ने जब अपनी पूरी तैयारी के साथ दिल्ली पर चढ़ाई कर दी, तब प्रजाजनों के अत्याग्रह से उक्त शाह ने ही निर्भीकतापूर्वक पृथिवीराज को विषम स्थिति की पूर्ण सूचना देकर उसे युद्ध के लिए उकसाया था । सैनिक तैयारियों, युद्ध-प्रयाण एवं भीषण युद्ध की सूचनाएँ देकर कवि ने युद्धों का सुन्दर वर्णन भी किया है। किन्तु यहाँ विचारणीय प्रश्न यह है कि वह शाह था कौन, और उसका नाम क्या था, इसकी सुनिश्चित सूचना चन्दवरदाई ने नहीं दी है। बहुत सम्भव है ढिल्ली (दिल्ली) का वह श्रीमन्त शाह स्वयं महासार्थवाह नट्टल साहू ही हो ? वस्तुतः यह एक गम्भीर खोज का विषय है। पासणाहचरिउ में वर्णित ढिल्ली-दिल्ली एवं उसका विश्वव्यापी आकर्षण मध्यकालीन विदेशी आक्रमणों के बाद सिन्ध एवं पश्चिमोत्तर भारत की स्थिति में अनेक प्रकार के परिवर्तन हुए। छोटे-छोटे राजे-रजवाड़े समाप्त हो गए तथा अरबों के आक्रमणों को रोकने हेतु क्षत्रिय-शक्तियों का उदय हुआ । महाकवि केशव' ने इन उभरी हुई परिस्थितियों में 'वीर बुन्देला-चरित' लिखा और क्षत्रिय - सामन्तों की सेना की कल्पना 'पद्मिनी' के रूप में करते हुए उक्त सेना का मस्तिष्क 'सीसौदिया', वाणी 'वड- गूजर, कान 'सोलंकी नेत्र 'चौहान' तथा 'कछवाहे' को उसका सुन्दर कपोल कहा है, साथ ही उनकी यह युक्ति भी प्रसिद्ध है— तोमर मनमथ मन पडिहार पद राठौर सरूप पॅवार ।। इस प्रकार कवि केशव ने उभरती हुई क्षत्रिय-शक्ति की चर्चा तो की और प्रच्छन्न रूप से यह संकेत भी किया कि तत्कालीन दिल्ली पर तोमरों, चौहानों एवं राठौरों का दबदबा बना रहा किन्तु उन्होंने स्वयं दिल्ली के इतिहास पर कुछ प्रकाश नहीं डाला । इसमें सन्हेह नहीं कि महाभारत काल से ही दिल्ली नगर का कई दृष्टियों से विशेष महत्त्व रहा है। उसके स्वर्णिम अतीत, सुसमृद्ध एवं सौन्दर्य ने विश्व को ऐसा आकर्षित किया कि बड़े-बड़े देशों ने भी अपने यहाँ दिल्लीनगर की स्थापनाऍ की । अमेरिका के ही विभिन्न प्रान्तों में 7 दिल्ली नगर उसी नाम से प्रसिद्ध हैं। यथा (1) कैलिफोर्निया के मरसेड नामक उपक्षेत्र में, दिल्ली (2) लसा अनीमास के कोलोरेडो क्षेत्र में, (3) डेलावर के आइओवा क्षेत्र में, (4) रेडउड (मेनिया - पोलिस) में, (5) डेलावर (न्यूयार्क) में बैकहम (ओकलाहोमा) में, एवं ( 7 ) रिचलैंड की दिल्ली - नगरियाँ प्रसिद्ध हैं। 1. संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो सम्पा. - 2. दे. दिल्ली के तोमर, पृ. 190 38 :: पासणाहचरिउ पं. हजारी प्रसाद द्विवेदी (इलाहाबाद 1952 ई.), पृ. 132
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy