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________________ भारत पर हमला करने वाला यह मुहम्मद गोरी पहला हमलावर न था । इसके पूर्व भी और अधिक नहीं तो आठवीं सदी से ही भारत में मुसलमान आक्रान्ताओं का आगमन प्रारम्भ हो चुका था। इस विषय में सुप्रसिद्ध इतिहासकार इलियट और डाउसन (History of India, Vol. I), इब्न हाकल (A Comprehensive History of India, Vol. V), मिनहाज सिराज ( तबकाते नासिरी) एवं मुहम्मद ऊफी आदि ने पर्याप्त प्रकाश डाला । उन आक्रमणों से भारत की सामाजिक तथा धार्मिक व्यवस्थाएँ छिन्न- भिन्न होने लगी थीं । महाकवि बुध श्रीधर को उक्त पृष्ठभूमि की जानकारी थी। उसी की झाँकी उसने पा.च. के एक दुष्ट पात्र यवनराज, जो कि कालिन्दी नदी के तटवर्ती जनपद का शासक था, के माध्यम से प्रस्तुत की है। इस प्रसंग में यह भी ध्यातव्य है कि कवि ने पार्श्व एवं रविकीर्ति के यवनराज के साथ युद्ध में जिन शस्त्रास्त्रों का प्रयोग बतलाया है, वे अधिकांशतः वहीं हैं, जो मध्यकालीन युद्धों में प्रयुक्त होते थे । नट्टल साहू के विषय में कुछ भ्रान्तियाँ कुछ विद्वानों ने 'पासणाहचरिउ' की प्रशस्ति का प्रमाण देते हुए नट्टल साहू द्वारा दिल्ली में पार्श्वनाथ मन्दिर के निर्माण कराए जाने का उल्लेख किया है' और विद्वज्जगत् में अब लगभग वही धारणा भी बनती जा रही है कि साहू नट्टल ने दिल्ली में पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया था, जब कि वस्तुस्थिति उससे सर्वथा भिन्न है । यथार्थतः नट्टल ने दिल्ली में पार्श्वनाथ मन्दिर नहीं, नाभेय (आदिनाथ) - जिन-मन्दिर का निर्माण कराया था, जैसा कि आद्यप्रशस्ति में स्पष्ट उल्लेख मिलता है। -- तित्थयरु पइट्ठावियउ जेण काराविवि णाहेयहो णिकेउ पइँ पुणु पइट्ठ पविरइउ जेम पढमउ को भणियइँ सरिसु तेण । । पविइण्णु पंचवण्णा सुकेउ ।। पासहो चरित्तु जइ पुणु वि तेम ।। ( पास. 1/9-2) अर्थात् हे नट्टल साहू, आपने नाभेय-निकेत (आदिनाथ - जिन मन्दिर) का निर्माण कराकर, उस पर पाँच वर्णवाले ध्वज को फहराया है। जिस प्रकार आपने उक्त मन्दिर का निर्माण कराकर उसका प्रतिष्ठा कराई, उसी प्रकार यदि मैं 'पार्श्वनाथचरित' की रचना भी करूँ, तो आप उसकी भी उसी प्रकार प्रतिष्ठा कराइये । उक्त वार्त्तालाप कवि श्रीधर एवं नट्टल साहू के बीच का है। उस कथन में "पार्श्वनाथचरित" नामक ग्रन्थ के निर्माण एवं उसके प्रतिष्ठित किए जाने की चर्चा तो अवश्य आई है, किन्तु "पार्श्वनाथचरित नामक मन्दिर" के निर्माण की कोई चर्चा नहीं और कुतुबुद्दीन ऐबक ने नट्टल साहू द्वारा निर्मित जिस विशाल जैन मन्दिर को ध्वस्त करके उस पर 'कुव्वुतु-ल-इस्लाम' नाम की मस्जिद का निर्माण कराया था, वह पार्श्वनाथ का नहीं, आदिनाथ का ही मन्दिर था। 'पार्श्वनाथ मन्दिर' के निर्माण कराए जाने के समर्थन में डॉ. कस्तूरचन्द काशलीवाल, डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री एवं पं. परमानन्द शास्त्री जैसे विद्वानों ने जो भी सन्दर्भ प्रस्तुत किए हैं, उनमें से किसी एक से भी उक्त तथ्य का समर्थन नहीं होता। प्रतीत होता है कि उक्त "पासणाहचरिउ " को ही भूल से "पार्श्वनाथ मन्दिर" मान लिया गया, जो सर्वथा भ्रमात्मक है इसी प्रकार साहू नट्टल को अल्हण साहू का पुत्र भी मान लिया गया, जो कि वास्तविक तथ्य के सर्वथा विपरीत है। मूल ग्रन्थ का विधिवत् अध्ययन न करने अथवा उसकी भाषा को न समझने या अनुमानिक आधारों प प्रायः ऐसी ही भ्रमपूर्ण बातें कर दी जाती है, जिनसे ऐतिहासिक तथ्यों का क्रम लड़खड़ा जाता है। पासणाहचरिउ की प्रशस्ति के अनुसार अल्हण एवं नट्टल दोनों वस्तुतः घनिष्ठ मित्र तो थे किन्तु पिता-पुत्र नहीं। अल्हण साहू राजा अंनगपाल तोमर (तृतीय) की राज्यसभा का सभासद अथवा राज्यमंत्री था, जबकि नट्टल 1. दिल्ली जैन डाइरेक्टरी, पृ. 4 प्रस्तावना :: 37
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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