SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 11/13 Marubhūti accidentally meets his brother-kamatha on the bank of river Indus. 5 पुच्छंते जणु-जणु दिय-सुएण सिंधू-सरि-तीरइँ रयविलित्तु जड-जूड-धारि-संसारभीरु दिट्ठउ जिट्ठउ भायरु थवंतु पणवेवि भणिउ हउँ भाय धिट्ठ जं कोहु करिवि णिक्कालिओसि जं अज्जु मज्झु लहु खमहि भाय इय भणिवि णविय दामोयरेण बिण्णविवि खमाविउ कमठु जाम ताडंतउ सिरु सिलपहरणेण हिंडते महि कमठाणुएण।। कोहाणल जालावलि पलित्तु ।। पंचग्गहिँ तावंतउ सरीरु।। मणु दुप्परिणामहँ तउ तवंतु।। ण मुणमि णिल्लक्खणु भाउ जेछ।। दुक्खग्गिजाल-पज्जालिओसि ।। दय करिवि किण्ण महु देहि वाय ।। पुणु-पुणु अणुएण सहोयरेण।। उट्ठिउ रुहिरारुण-णयण ताम।। मरुभूइ मुक्क जीवे खणण।। घत्ता— उप्पण्णु महावणि सल्लइतरु घणि असणिघोसु णाम करि। वरुणा वि मरेप्पिणु दुह वि सहेप्पिणु करिणि जाय तहो मणहरि।। 197 ।। 11/13 सिन्धु नदी के तट पर मरुभूति की कमठ से अचानक ही भेंटकमठ की खोज में तत्पर वह द्विजपुत्र-मरुभूति मार्ग में जो भी मिलता, उससे कमठ के विषय में पूछता हुआ पृथिवी पर भटकता हुआ सिन्धु नदी के किनारे पहुँचा। वहाँ उसने रजोलिप्त (भस्म लगाए हुए) क्रोध रूपी अग्नि की ज्वाला में प्रदीप्त, जटा-जूट धारी, संसार से भयभीत, पंचाग्नि में शरीर को तपाते हुए तथा अनेक दुष्परिणामों से तप को तपते हुए अपने ज्येष्ठ भाई कमठ को वहाँ खड़ा हुआ देखा। मरुभूति ने उसे प्रणाम कर कहा— मैं आपका वही धृष्ट, एवं निर्लक्षण भाई हूँ, जिसने अपने जेठे भाई को क्रोधित होकर घर से निकलवा दिया था और दुखरूपी अम्नि-ज्वाला में जला डाला है। अतः हे भाई, दया कर आज मुझे क्षमा कर दीजिए। किन्तु आप मुझसे बोल क्यों नहीं रहे हैं? इस प्रकार दामोदर (श्रीकृष्ण) को प्रणाम करने वाले विष्णु-भक्त उस सहोदर छोटे भाई ने बारम्बार विनती कर जब उस कमठ से क्षमायाचना की, तभी उस दुष्ट कमठ के नेत्रों में खून उतर आया। वह क्रोधावेश में उठा और उसने मरुभति के सिर में एक शिला उठाकर इतने जोर से प्रहार किया कि मरुभति के तत्काल ही प्राण-पखेरु उड गये। घत्ता- वह मरुभूति मरकर सल्लकी-वृक्षों वाले सघन महावन में अशनिघोष नामक हाथी के रूप में उत्पन्न हुआ। उधर, कमठ की पत्नी वरुणा भी मरकर अनेक दुखों को सहन करती हुई उसी अशनिघोष हाथी की मनोहरी हथिनी के रूप में उत्पन्न हई।। 197 ।। पासणाहचरिउ :: 229
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy