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________________ 11/5 Vivid description of King Aravinda, the ruler of Podanapuri. तहिँ णरवइ णामेणारविंदु णिवसइ मुहपह-णिहयारविंदु ।। सोसिय दुग्गत्तण णीर-विंदु णाविय धरणीसर वीर-विंदु।। विणिवारिय वइरीयण वराहु तिरयणहिँ वि परिहरियावराहु।। दण्णाय णिहिल रयणियर राह तणु-जुइ णिज्जिय पंचसर राहु ।। परियाणिव णिव पंचंगमंतु' उत्तुंग-तुरंग-मयंग-वंतु।। णाएण णिहालिय सव्व पाणि णवरत्तुप्पलदलमव्व पाणि।। सारय ससंक-रुइ कतिवंतु बहु भोय समिद्धु ति-सत्तिवंतु।। गुरुयण-कम-कमल-महाविणीउ णिहयंतरंग रिउ दुविणीउ।। परिसंकोइय पर-बल णिवासु चंडीसहास सम जसणिवासु।। रमणीय रमणि-मणहरण मारु चिंतामणिब्व वंदियण मारु।। घत्ता– घंघल णित्थारणु गुणवित्थारणु जण-अणुरायहो कारणु। सत्थत्थ-वियारणु कुणय-णिवारणु हणइ रोसु णिक्कारणु ।। 189 ।। 10 11/5 पोदनपुरी के राजा अरविन्द का वर्णन उस पोदनापुरी में अरविन्द नामक राजा, जो कि अपने मुख की आभा से कमलों की शोभा को भी निष्प्रभ करता था, निवास करता था तथा उसने दुर्गति (कर देने वाली दरिद्रता) रूपी जल की बूंद-बूंद को भी सुखा दिया था, जिसने धरणी के सभी वीरों को अपने चरणों में झुकने के लिये बाध्य कर दिया था, बैरी रूपी वराहों - शूकरों को जिसने मार गिराया था और जो त्रिकरणों द्वारा समस्त अपराधों को दूर करने वाला, अन्याय रूपी पूर्णचन्द्र के लिये राहु के समान, अपने शरीर की कान्ति से कामदेव रूपी राह को भी जीत लेने वाला था। वह राजा पंचांग-मन्त्र' का ज्ञाता, उत्तुंग घोड़े एवं हाथियों का स्वामी तथा समस्त प्राणियों को न्याय दृष्टि से देखने वाला था। जिसके हस्त-युगल नवीन रक्तकमल के दल के समान भव्य थे, जो शरदकालीन चन्द्रमा की कान्ति के समान सुन्दर आभा वाला था तथा जो अनेकविध भोगों से समृद्ध, त्रि-शक्तियों का स्वामी, गुरुजनों के चरण कमलों में महा विनीत, अन्तरंग शत्रुओं तथा दुर्विनीतों का नाशक, शत्रुजनों के मित्र-राजाओं की आशाओं को सिकोड़ने वाला महादेव के हास्य के समान यश का निवास स्थल, सुन्दर रमणियों के मन को हरण करने के लिये कामदेव के समान तथा बन्दीजनों की दरिद्रता को दूर करने के लिये जो चिन्तामणि-रत्न के समान था। घत्ता— और, जो व्यसनों (अथवा दरिद्रता के दुख) को मिटाने वाला, गुणों का विस्तारक, लोगों की प्रसन्नता का कारण, प्रशस्त शास्त्रों के अर्थ का विचारक, कुनीतियों का निवारक और अकारण ही क्रोध का त्यागी था||18 || 1. सोमदेव सूरिकृत नीतिवाक्यामृत के अनुसार पंचांग-मन्त्र निम्न प्रकार हैं कर्मणामारम्भोपायः पुरुष द्रव्य सम्पद देशकाल विभागः । विनिपात प्रतीकारः कार्यसिद्धिरिति पञ्चाङ्गो मन्त्रः ।। 10/25 अर्थात् कार्यारम्भोपाय, पुरुष तथा द्रव्य-सम्पत्ति, देश-काल का विभाग, विघ्न-प्रतिकार और कार्यसिद्धि ये पंचांग-मन्त्र कहलाते हैं। पासणाहचरिउ :: 221
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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