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________________ 5 10 बालेण वि विरइज्जइ सुधम्मु किं बालहो पवहइ जमु ण झत्ति अण्णेसु अत्थि कम्मंतरेसु च्छिद्दिक्क गवेसणु करइ तेम परिवडिउ जीउ रोगावईसु पंचत्त वग्घ भक्खिज्जमाणु मा अज्ज - कल्लि चिंतहु मणेण णिग्घिण्णु णिराणुकंपउ करालु जुअस मिला' संजोएण जीउ परकुमइ पयासइ धम्मि लग्गु 10/14 Getting human life is rare. घत्ता- तणु मित्तउ चिम्मित्तउ जीउ अणिहणु अणाइउ । यमग्ग-पवीर्णे अइ अगम्मु ।। बहु-विवि-वाहि-पडिवि ससत्ति ।। परिवाडियम्मि णउ दुत्तरेसु ।। अहणिसु जमराउ - कुमाराउ जेम ।। पणरह-पमाय-तरु संतईसु । । उव्वरइ कियंतर कालु जाणु ।। जिणभणिउ धम्मु किज्जइ खणेण ।। खयसिहिव सव्वु णिड्डहइ कालु ।। पावइ णस्तु णिय कम्मणीउ ।। मुइ कयावि मणि मुक्ख मग्गु ।। जिह कत्तउ तिह भोत्तउ सइँ अमुत्तु गुण - राइउ ।। 179 ।। सत्य धर्म का पालन तो बालकों के द्वारा भी किया जाना चाहिए, यद्यपि वह (धर्म) नय-मार्ग में प्रवीण लोगों के लिये भी अति अगम्य है । यमराज विविध प्रकार की व्याधियों में अपनी शक्ति प्रकट कर क्या बालक को शीघ्र ही नहीं पकड़ लेता ? 10/14 मनुष्य-जन्म की दुर्लभता अन्य दुस्तर कर्मान्तरों की परिपाटियों में कोई क्रम नहीं है। यमराजकुमार अहर्निश छिद्रान्वेषण ही करता रहता है । पन्द्रह प्रमाद रूपी वृक्षों की संततियों में रोग आदि आपत्तियों में फँसा हुआ यह जीव मृत्यु रूपी व्याघ्र द्वारा खाया जाता है, ऐसा जानों कि उससे वह कितने समय तक बचा रह सकता है? 210 :: पासणाहचरिउ अतः आज या कल का अपने मन में विचार किये बिना तत्काल ही जिन भाषित धर्म का पालन कीजिये । काल अर्थात् यमराज तो निर्घृण्य, अनुकम्पा रहित एवं कराल है, और प्रलयकालीन अग्नि के समान वह सभी को जला डालता है। यह जीव अपने कर्मों से प्रेरित होकर जुअसमिला' संयोग से ही कठिनाई पूर्वक दुर्लभ नर-भव प्राप्त कर पाता है। दुर्लभ नरंजन्म प्राप्त करके ही यह जीव कुमति द्वारा प्रकाशित मिथ्या धर्म में लगा रहता है और अपने मन में कभी भी मोक्षमार्ग को समझने का प्रयत्न नहीं करता । घत्ता - यह जीव अपने शरीर प्रमाण है, चैतन्य मात्र है, अनिधन (अनन्त) एवं अनादि है । जैसा कर्त्ता है वैसा ही भोक्ता है और स्वयं अमूर्त गुण से सुशोभित है ।। 179 ।। - 1. यह एक हरियाणवी कहावत है जिस प्रकार समुद्र में एक किनारे बैलगाड़ी का जुआ डाला जाय और दूसरे किनारे पर सामला अर्थात् सैल फिर समुद्री तरंगों से धक्का खाते-खाते उस जुए के छिद्र में समिला का अपने आप पिरोया जाना एक दुर्लभ संयोग ही माना जायेगा। उसी प्रकार विविध योनियों में भटकते हुए उत्तम नरभव प्राप्त कर लेना भी दुर्लभ संयोग ही माना जाता है।
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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