SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10/9 . King Prabhañjana comes to the Preaching-Hall (Samavasarana) to listen religious discourses. सामंत-मंति परियरिउ जंत ससिकंत कित्ति कामिणिहिँ कंतु ।। संपत्तु पहंजणु णिवइ तेत्थु णिवसइ जिणु पासु संसरणु जेत्थु ।। पणवेविणु थुइ पारद्ध जाम चउदेवणिकाय सुणंति ताम।। जय-जय परमेसर वीयराय माणिय केवल-सररुहपराय।। जयभुवण-भवण-उद्धरण-खंभ परिहरिय णिहिल आरंभ-डंभ।। जय भुअण भमिर मणभमर-रुंभ जय तिजयणाह मणसिय णिसुंभ।। जय भीमभवोवहि तरणपोय णिरसिय संसारुप्पति सोय।। जय मह-मिच्छत्त-तमोह-सूर सविणय पणविय भवियासपूर।। जय देव दिण्ण दुंदुहि-रवाल सइँ उप्पाडिय सिर-कुडिलबाल।। जय धम्म मग्ग भासण-पवीण अइतिव्व-विह तव-ताव-झीण।। घत्ता– जिणपासहो गयपासहो थुइ विरएवि पहंजणु। उवविट्ठउ जणदिट्ठउ णियकोट्ठए गुणि-रंजणु ।। 174 ।। __10/9 शौरीपुर के राजा प्रभंजन का धर्म-श्रवण हेतु समवशरण में प्रवेशसामंतों एवं मंत्रियों से घिरा हुआ तथा चन्द्रमा की कान्ति के समान कीर्ति नाम की कामिनी का वह पति राजा प्रभंजन चलकर वहाँ पहुँचा जहाँ पार्श्वप्रभु का समवसरण विराजमान था। उसने प्रणाम करके जब अपनी स्तुति (निम्न प्रकार से) प्रारम्भ की, तब चारों निकायों के देव उस स्तुति का श्रवण करने लगे —हे परमेश्वर, हे वीतराग आपकी जय हो, जय हो। हे केवलज्ञान रूपी कमल-पराग से विभूषित, हे भुवनरूपी महल के आधार स्तम्भ के समान तथा समस्त आरम्भ एवं परिग्रहों के आडम्बरों का त्याग करने वाले हे देव, आपकी जय हो। संसार में घूमने वाले मन रूपी भ्रमर को रोकने वाले हे देव, आपकी जय हो। मनसिज-काम के मन्थन करने वाले हे त्रिजगन्नाथ, आपकी जय हो। भयंकर संसार रूपी समुद्र से पार होने के लिये जहाज के समान हे देव, आपकी जय हो। संसार की उत्पत्ति के स्रोत को नष्ट करने वाले हे देव, आपकी जय हो। मिथ्यात्व रूपी घने अंधकार-समूह को नाश करने के लिये सूर्य के समान हे देव, आपकी जय हो। विनयसहित प्रणाम करने वाले भव्यों की आशा को पूर्ण करने वाले हे देव, आपकी जय हो। देवों द्वारा बजाई गई दुन्दुभि-वाद्य की मनोहर ध्वनि से युक्त हे देव, आपकी जय हो। शिर के कुटिल केशों को स्वयं उपाड़ने वाले हे देव, आपकी जय हो। धर्म-मार्ग के उपदेश देने में कुशल हे देव, आपकी जय हो, अति तीव्र द्विविध तपों की ताप से क्षीण कृश देहवाले हे देव, आपकी जय हो। घत्ता- जिनका संसार रूपी पाश नष्ट हो गया है, ऐसे पार्श्व-जिन की स्तुति करने के बाद उस राजा प्रभंजन को लोगों ने गुणियों को प्रसन्न करने वाले अपने प्रकोष्ठ में बैठते हुए देखा ।। 174 ।। पासणाहचरिउ :: 205
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy