SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Colophon इय सिरि-पासचरितं रइयं बुह - सिरिहरेण गुण - भरियं । अणुमणियं मज्जं णट्टल - णामेण भव्वेण । । छ । । सुरणार - तिरियाणं तिहुअण-ठाणरूप-थिति कित्तणए । कमठासुर-उवसमणं णवमी संधी परिसमत्तो ।। संधि ।। १ ।। Blessings to Naṭṭala Sahu, the inspirer and guardian यस्य रूपं विलोक्यऽऽशु जगाम सुहृदां ब्रजः । केकीब जीमूतं सः जीयात् नट्टलश्चिरम् ।। पुष्पिका इस प्रकार बुध श्रीधर द्वारा गुणों से भरपूर इस मनोज्ञ पार्श्वचरित का प्रणयन किया गया, जिसका भव्य नट्टल साहू ने अनुमोदन किया । तीनों लोकों के समान-स्थिति रूप तथा देवों, नारकियों, मनुष्यों एवं तिर्यंचों द्वारा स्तुत त्रिभुवनपति पार्श्व पर कमठासुर द्वारा किये गये उपसर्गों के शमन का वर्णन करने वाली यह नौवीं सन्धि समाप्त हुई। 196 :: पासणाहचरिउ आश्रयदाता के लिये आशीर्वाद —जिसके रूप-सौन्दर्य एवं सत्कार्यों को देखकर समस्त सुहृद केकी तथा जीमूत के समान तत्काल ही एकत्र हो गये, ऐसा साहू नट्टल चिरकाल तक जीवित रहे ।
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy