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________________ 9/20 The number of natural (Akritrima) Jain Temples, an interesting description. असिय सुरायलेसु जिण-मंदिर गयदंते सुवीस सिरि णंदिर।। तीस कुलायलेसु सुर-संथुअ पुणु असीइ वक्खार गिरीसुअ।। खेयर गिरिवरेसु सगरूसउ कुरुदुमेसु दह विहुणिय भव-भउ।। कुंडलेसु चत्तारि समक्खिय रुजगवरेसु चयारि णिरिक्खिय।। मण्णसोत्तर-गिरीसु चत्तारि जि इसुगारेसु तहा चत्तारि जि।। णंदीसर गिरीसु वावण्ण विविह रयण णिम्मियइँ रवण्ण।। सइँ मिलियइँ अट्ठावण्ण' चारि सयइँ हय तिहुअण दुण्णइँ।। तिरिय लोए पत्तियइँ जिणेसहँ मंदिराइ उवसम समणीसहँ।। तेल्लोक्कहे वि जिणिंदह गेहइँ धवलत्तण जिय सारय-मेहइँ ।। सव्वइँ अट्ठकोडि छप्पण्णइँ लक्खहँ सत्ताणवइँ सहास।। चारिसयइँ अवर वि एयासिय जिणहर संख जिणिंदें भासिय।। घत्ता- णिसुणेवि जिंणदहो धम्म-सवण णर देवहिँ। आणंदिय चित्तहिँ जिणवर पय-सेवहिँ।। 164।। 9/20 अकृत्रिम जिन-मंदिरों की संख्या एवं उनका रोचक वर्णनपाँच सुमेरु पर्वतों पर अस्सी अकृत्रिम जिनमंदिर हैं। गजदन्त (पर्वत) पर शोभा से प्रतिष्ठित उनकी संख्या बीस है। कुलाचलों पर देवों द्वारा संस्तुत तीस जिन मंदिर हैं। फिर वक्षार पर्वतों पर अस्सी है। खेचर-पर्वतों पर सात है। कुरुभूमि के वृक्षों पर संसार के भय के नाशक वे दस जिन-मंदिर हैं। कुंडलगिरी पर चार जिन-मंदिर कहे गए हैं। रुचक पर्वत पर चार, मानुषोत्तर पर्वत पर चार, इषुकार पर्वत पर चार और नन्दीश्वर पर्वत पर बावन जिनालय है, जो अनेक रत्नों से बने हुए और रमणीय हैं। ये सब मिलकर संख्या में चार सौ अट्ठावन होते हैं, जो त्रिभुवन के पापों का नाश करने वाले है। इस प्रकार तिर्यक् लोक में उपशम से श्रमणों के स्वामी जिनेश के अकृत्रिम मंदिर कहे गये है। अपने धक्लपने के कारण वे शरद के मेघों को जीतने वाले, जिनेन्द्र गृहों की कुल संख्या मिलाकर आठ करोड़ छप्पन लाख सत्तावन हजार चार सौ इक्यासी है, ऐसा जिनेन्द्र ने कहा है। घत्ता- इस प्रकार जिनेन्द्र के मुख से धर्म को सुनकर मनुष्य और देव आनन्द चित्त हो गए और भगवान जिनेन्द्र के चरणों की सेवा में तत्पर होते हुए उन्होंने- || 164 || 194 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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