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________________ 5 10 15 7/8 On Failure to hit by the Bajra-Weapons the demon King Meghamālin creates disturbances (Upasarga) on Pārśwa through the heavy rains. वत्थु - छन्द - किं बहुत्तहिँ विहल - वयणेहिँ । पुणु पुणु वि उच्चारिएहिँ एहु वइरि जमपंथि लायमि । को धरइ मारंतु मइँ अज्जु वज्ज-घाएण घायमि । । अहवा अहिमाणुव्वहहि रे सउमणस हयास । ता रक्खेज्जहि वइरि लहु महु मारंतहो दास । । छ । । इम खरयर वयणइँ उच्चारिवि थोर पवर दीहर भुअ-दंडहिँ बज्जु एप्पिणुपासकुमारहो ता जिणवर-तप-तेय- समाहउ तह रयणायरे रंयणु णिहीणहो हँ अवसर णवणलिणदलक्खउ हि ण परक्कमु फुरइ महंतउ बहुवि भेयइँ माया दरिसेवि पुणु पंचत्तु णेमि णिद्दारेवि विरइय पंचवण्ण णव जलहर वस्तु-छन्द बार-बार धणवइ पच्चारिवि ।। जिय तियसाहिव करिवर-सुंडहिँ । । जा सिरु चूरइ चूरिय मारहो । । हत्थो गलिउ वहंतु महामउ ।। चिर विरइय गुरुयर रय खीण हो ।। मेघमालि सो हुयउ विलक्खउ ।। पुणुउ आउ चिंतइ मइवंतउ ।। हो दिढज्झाणहो मणु णिरसेवि ।। इय असुराहिवेण मणिधारेवि । । तक्खणेण गयणयले समलहर ।। 7/8 बज्र-प्रहरण असफल होने पर वह असुराधिपति मेघमाली पार्श्व मुनीन्द्र पर असाधारण मेघवर्षा कर उपसर्ग करता है - बार-बार निष्फल बहुत वचनों के उच्चारण से क्या लाभ? इस शत्रु को ( अवश्य ही ) यम- पन्थ पर ले आऊँगा। मुझ मारते हुए को कौन रोक सकता है? आज ही उस मुनीन्द्र (पार्श्व) को बज्राघात से मार डालूँगा अथवा, हे हताश सौमनस यक्ष, हे मुनीन्द्र दास, यदि तू अभिमान का सच्चा वाहक है, तो मेरे द्वारा मारे जाते हुए मेरे शत्रु (मुनीन्द्र पार्श्व ) की रक्षा कर— इस प्रकार कर्कशतर वचनों का उच्चारण कर, धनपति कुवेर (सौमनस यक्ष) को बार-बार फटकार कर, इन्द्र के गजेन्द्र की सूँड को भी मात कर देने वाले स्थूल दीर्घ भुजदण्डों के द्वारा बज्र को लेकर काम के मद को चूरने वाले पार्श्वकुमार के सिर को चूरने के लिये जब वह चला, तभी वह पार्श्व जिनवर के तपस्तेज से आहत हो गया और अत्यन्त भयाकुल हो गया तथा उस नीच के हाथ से वह बज्र धरती पर उसी प्रकार गिर गया, जिस प्रकार, पूर्वकृत महापाप के कारण पानी के भयाकुल हाथ से उसका रत्न समुद्र में गिर जाता है । उसी समय, नवीन कमल - पत्र के समान नेत्रों वाले उस मेघमाली का महान् पराक्रम स्फुरायमान सफल न हो सका और वह जब विलक्ष्य हो गया, तब मतिवन्त उस (मेघमाली) ने पुनः अन्य कोई उपाय सोचा । अनेक प्रकार से माया-प्रपंच का प्रदर्शन कर उन मुनीन्द्र पार्श्व के मन को दृढ़-ध्यान से विचलित कर उनको खण्ड-खण्डों में विदा कर क्यों न मार डालूँ? ऐसा विचार कर उस असुराधिपति मेघमाली ने अपनी विक्रिया- ऋद्धि से पाँच वर्णवाले नवीन मेघों की रचना कर दी, जिससे तत्काल ही सारा आकाश अन्धकार से भरकर मलिन हो गया पासणाहचरिउ :: 143
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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