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________________ 7/7 The demon-king Meghmālina scolds very badly to yaksharāja Saumanas for his insulting advise. वत्थु-छन्द- अरिरि णिग्घिण किविण सउमणस। सुरराय संसाकरण महु विवक्ख गुणरासिभूसण। गुण-दोस विवरण-रहिय विहिय पाव वरलच्छि-दूसण।। एउ बोल्लंतहो तुह अलिउ महु रिउ-पक्ख-समीह। सयसक्करु होएवि लहु कह गय मुहहो ण जीह ।। छ।। तिहुअणि कवणु ण विसयासत्तउ तिहुअणि कवणु ण जम्मणु पत्तउ।। तिहुअणि कवणु ण कम्म जित्तउ तिहुअणि कवणु ण सोयहिं सित्तउ।। तिहअणि कवण ण रोयहिँ रोहिउ तिहअणि कवण ण वहरि णिसंभिउ।। तिहअणि कवण ण णिद्दए भुत्तउ तिहअणि कवण ण मयहिँ विगुत्तउ।। तिहअणि कवणु ण भुक्खए खिण्णउ तिहुअणि कवणु ण चिंता दण्णउ।। तिहुअणि कवणु ण तण्हए त्ताविउ तिहुअणि कवणु ण भयहिँ विहाविउ।। तिहुअणि कवणु ण कम्म बद्ध तिहुअणि कवणु ण मायए खद्धउ ।। तिहुअणि कवणु ण जरए णिवीडिउ तिहुअणि कवणु ण कालें लोडिउ।। तिहुअणि कवणु ण रोस वसंगउ तिहुअणि कवणु ण मूढ वसंगउ।। घत्ता— मज्झत्थु महत्थु मुणिंदु जइ ता कह पडिखलइ विभाणगइ। विहरंतहो महो विमलंबरए परिघोलिर तियस-तियंबरए ।। 121 || 77 असुराधिमति मेघमाली द्वारा अनिच्छित सलाह के लिये सौमनस-यक्ष की भर्त्सनावस्तु-छन्द- अरे-रे निघृण्य, कृपण (कृतघ्न) सौमनस (यक्ष), इन्द्र की प्रशंसा के गीत गाने वाले, मेरे विपक्षी शत्रु की गुणावली बखानने वाले, गुण-दोष के विचार से हीन बुद्धिवाले, पापकार्य से उत्तम लक्ष्मी को दूषित करने वाले, मेरे शत्रु पक्ष की समीक्षा करने वाले, तेरे द्वारा इस प्रकार के झूठे बोल बोलते हुए, तेरे मुख की जीभ के हजार-हजार टुकड़े होकर बिखर क्यों नहीं गये ? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो विषयासक्त नहीं? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जिसने जन्म प्राप्त नहीं किया? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो कर्मों द्वारा जीता नहीं गया? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो शोक से सन्तप्त न हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो रोगों से ग्रसित न हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो शत्रुओं द्वारा घाता नहीं गया? त्रिभुवन में ऐसा कौन है जो निद्रा के द्वारा भोगा नहीं गया हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो मद के द्वारा नष्ट नहीं किया गया? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो भूख के कारण खिन्न न हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो चिन्ता से व्याकुल नहीं? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो तृष्णा से तप्त नहीं? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो भय से प्रभावित नहीं, त्रिभुवन में ऐसा कौन है जो कर्मों से बंधा न हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो माया के द्वारा खा नहीं डाला गया हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो जरा से पीड़ित न हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो काल के द्वारा बिलोडा नहीं गया हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो रोष का वशीभूत न हो? त्रिभुवन में ऐसा कौन है, जो मूढता (अज्ञान मोह) के वश में न हो? घत्ता– यदि ये मुनीन्द्र (पार्श्व) मध्यस्थ (समवृत्तिवाले) एवं महार्थ होते, तब तू ही बता कि उसने देवांगनाओं के वस्त्रों को फरफराने वाले निर्मल आकाश में विहार करने वाले मेरे विमान की गति को स्खलित क्यों किया? (121) 142 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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