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6/8 While Prince Parśwa was beholding minutely the actions, reactions and psychological tendencies of the Tāpasas (Ascetics), at the same time an evil hearted ascetic named after Kamatha arrives at the scene.
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तहिँ दिट्ट्टु कोवि हुअवहु हुणंतु पंचग्ग कोवि णिच्चल मणेण जड-जूड-मउड-मंडियउ केवि वक्कल कोवीणु करंतु कोवि
- वप्पण - विहि विरयंतु कोवि कणयपसूणहिँ पुज्जंतु कोवि हाहाइसदु विरयंतु कोवि विरयंतउ सिक्क समूहु कोवि केयारपुराणु पढंतु कोवि थिर-लोयणु संभासंतु कोवि
कलवाणि कोवि पंचमु झुणंतु । साहंतु परिज्जिय सरकणेण । । चम्म परिट्ठिय देहु कोवि । उद्धलंतउच्छारेण कोवि । । हर सिरि गडुअ ढालंतु कोवि ।। गुरुयर भत्तिए णच्चतु कोवि ।। कत्तारियालंकियपाणि कोवि । करधरिय सत्थु चितंतु कोवि ।। तिणयणहो पयाहिण दिंतु कोवि ।
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घत्ता- एत्थंतरे असुहंकरु भिउडि-भयंकरु भुवण भवणे विक्खाययउ ।
सिरकय लक्कड भारउ णिसिय कुठारउ तावसु कमठु समाययउ ।। 103 ।।
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कुमार पार्श्व जब तापसों की वृत्ति एवं प्रवृत्ति देख रहे थे, तभी कमठ नामका एक अशुभंकर तापस वहाँ आया—
उस तपोभूमि पर जाकर कुमार पार्श्व ने देखा कि कोई तापस तो अब अग्नि में होम कर रहा है और मुर वाणी से पंचम स्वर में मन्त्र-ध्वनि कर रहा है । कोई-कोई तो निश्चल मन से शत्रुजनों को जीत लेने वाले बाण के समान सरकण्डों से पंचाग्नि तप को साध रहा है और कोई जटाजूट के मुकुट से मण्डित हो रहा है । कोई-कोई चर्म एवं अस्थि में स्थित देह मात्र वाले (अर्थात् नरकंकाल ) थे, तो कोई बल्कल-कौपीन धारण किये हुए थे और कोई देह में भस्म लपेट रहे थे। कोई पौधों में जल सेचन की क्रिया कर रहा था, तो कोई हर-हर महादेव के सिर पर गडुआ से जल ढाल रहा था। कोई कणय- पुष्पों (धतूरे के पुष्पों) से पूजा कर रहा था, तो कोई अत्यन्त भक्ति-भरित होकर नाच रहा था। कोई अहा अहा शब्द का उच्चार कर रहा था, तो कोई हाथों को कैंची के समान अलंकृत कर रहा था। कोई सींकों का समूह बना रहा था, तो कोई-कोई हाथ में शास्त्र धारण कर उसका चिन्तन कर रहा था और कोई शिवपुराण (केयारपुराण) का अध्ययन कर रहा था। कोई त्रिनेत्र धारी (शिव) की प्रदक्षिणा कर रहा था, तो कोई स्थिर नेत्रों से सम्भाषण कर रहा था। कोई .....
घत्ता- इसी बीच वहाँ अशुभंकर, भृकुटि से भयंकर, लोगों में कमठ के नाम से विख्यात एक तापस अपने सिर पर लक्कड़ों का बोझ रखे हुए तथा तीक्ष्ण कुठार लिये हुए आया । (103)
120 :: पासणाहचरिउ