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________________ 3/9 Hayasena passes orders to his C-in-C. to beat the cattle drums and to be ready to march at once against the Yavanräja. दूअवयणु परिवढिय मच्छरु समरंगणे तोसिय पवरच्छरु।। पयभर कंपाविय महिमंडलु णिय मुअबल विभाविय आहंडलु ।। असिधेणुअहे पसारिय करयलु अरुण-णयण-सिरि-रंजिय-णहयलु।। हणु-हणु-हणु भणंतु कय कलयलु णव णेहीरविलेविय कमयलु।। भूरि-समर-विण्णासिय भुअबलु मद्विघाय-लोट्टालिय मयगलु।। सुइ-कुंडल-मंडिय-गंडत्थलु पुर-कवाड सण्णिह वच्छत्थलु।। विविहाउह-पहार-परिहयवरु दिढयर-पाणि-णिवीडिय-असिवरु।। णिय-णिम्मलयर-वंस-विहूसणु __ अगणिय-वियलिय-मणिमय-भूसणु ।। घत्ता- इय खुहियउ तह परियणु सयलु हयसेणहो धरणीसरहो। . छण चंदुग्गमे मयरहरु जह सुर-गहीर भेरी-सरहो।। 48 ।। 3/10 Aspirations of the wives of warriors, eager to march in front-row to the battle-field. कणयाहरण विहूसिय गत्तहँ पहरणकंति-रहिय-णक्खत्तहँ।। कायराण भावाइँ चयंतहँ सुभडयणहँ सण्णाहु लयंतहँ।। 3/9 राजा हयसेन के युद्-प्रयाण के आदेश एवं रणभेरी की गर्जनादूत के उक्त वचनों को सुनकर राजा हयसेन का मन क्रोध से भर उठा और इस प्रकार पूर्व समरांगणों में श्रेष्ठ विजय प्राप्त करने के कारण अप्सराओं को भी संतुष्ट करने वाले, अपने चरणों के भार से महीमंडल को कंपाने वाले, अपनी भुजा के बल से इन्द्र को भी आश्चर्यचकित कर देने वाले, असिधेनु पर निरन्तर हाथ को फैलाये रखने वाले, अपने रक्तवर्ण के नेत्रों से आकाश को रंजित करने वाले, मारो, मारो, मारो के कोलाहल को करने वाले, नवीन नीहाररज से विलेपित चरण-तल वाले, अनेक युद्धों में शत्रु के भुजबलों को तोड़ने वाले, मुक्कों की मार से मदमत्त गजों को भूमि पर लोटाने वाले, कर्णकुण्डलों से मण्डित गण्डस्थल वाले, नगरद्वार के कपाट तुल्य विस्तृत वक्षस्थल वाले, विविध आयुधों के प्रहार से शत्रुजनों के हाथों को परिहत (नष्ट) करने वाले, दृढ़तर हाथों से निपीड़ित असिवर वाले, अपने निर्मलतर वंश के भूषण, अगणित टूटे मणिमय भूषणवाले, उनघत्ता- धरणीधर हयसेन के क्षुब्ध होने पर तथा सुरभेरी के समान गम्भीर रणभेरी सुनकर समस्त परिजन उसी प्रकार क्षुब्ध हो उठे, जिस प्रकार कि पूर्णचन्द्र के निकलते ही सारा समुद्र क्षुब्ध हो उठता है। (48) 3/10 __ रण-प्रस्थान के लिये व्याकुल योदाओं से उनकी पत्नियों की अभिलाषाएँ स्वर्णाभरणों से विभूषित गात्रवाले, प्रहरणों (शस्त्रों) की कान्ति से नक्षत्रों को भी शोभाविहीन कर देने वाले, कायरता के भावों को त्याग देने वाले तथा कवच में आवेष्टित और रण-प्रयाण की आज्ञा पाने के लिये व्याकुल किसी पासणाहचरिउ :: 55
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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