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________________ बीया संधी 2/1 Description of uncommon wonders happened at the time of the new born baby (The Hero of this Epic) घत्ता- सो तिहुअण सामि सिवउरगामि सुहिणा केरिसु दिछ। णं जस-तरुकंदु उइयउचंदु हय जण-ताव णिद्।। छ।। णं जसु जणियउ णयवित्तियाइँ णं भोयलाहु सुहसंपयाइँ णं बालदिवायरु सुरदिसाए णं जगगुरुत्तु केवल-सिरीए णं कामएउ पच्चक्खु जाउ णं सुम्मइ जो जगि धम्मणामु णं णिएवि लोउ अमणोरमेण करुणइँ धरेवि विहि बालदेहु णं जसु जग मंडवि अंबरेण सिव-सिद्धि-विलासिणि सहरसेण घण-कढिण-थोर-थण कय करग्ग णं णवमुत्ताहलु सुत्तिया ।। णं पुण्णपुंजु णिम्मल दयाइँ।। णं धणणिहि-कलसल्लउ रसाए।। णं सील सउच्चत्तणु-हिरीए।। णं सिसुमिसेण सुरवइ जि आउ।। सो एहु अवयरिउ दिण्णकामु।। खज्जंतउ पावभुअंगमेण।। रक्खण-णिमित्त अवयरिउ एहु।। आवेसइ एत्थ सयंवरेण ।। परमेसर-जिण रइ-रस-वसेण।। विरहारि विहिय परिहवेण भग्ग।। 10 2/1 शिशु की अपूर्वता का वर्णनत्रिभुवन के स्वामी, शिवपुरगामी, उस जिन-शिशु को सज्जनों ने किस प्रकार देखा? निश्चय ही उन्होंने उसे इस प्रकार देखा जैसे मानों वह यश रूपी वृक्ष का कन्द-मूल ही हो, अथवा अनिष्टकारी जन-सन्ताप को नष्ट करने वाले चन्द्रमा का ही उदय हो। (छ) ___ वह जिन-शिशु ऐसा प्रतीत होता था-मानों नय (न्याय-मार्ग) वृत्ति से उत्पन्न यश ही हो। अथवा, मानों सीपी से उत्पन्न नवजात मोती ही हो। मानों सुख की संपदा से भोगों का लाभ ही जन्मा हो। या, मानों, निर्मल दयाभाव से पुण्य का पुंज ही जन्मा हो। या, मानों, पूर्व-दिशा से सभी को उल्लसित करने वाला बाल-सूर्य ही जन्मा मानों, पथिवी से निकले हए धन का वह निधान-कलश ही हो। या, मानों, केवलज्ञान रूपी लक्ष्मी से जगत के गुरु का ही जन्म हुआ हो। या, मानों, ही (लज्जा) से शील-शौच रूपी धर्म का ही जन्म हुआ हो। वह शिशु ऐसा प्रतीत होता था, मानों प्रत्यक्ष रूप में कामदेव ही उत्पन्न हुआ हो। अथवा, मानों इस बालक के छल से इन्द्र ही वहाँ आया हो। अथवा, मानों, जगत में सभी मनोरथों को प्रदान करने वाले जिस धर्म का नाम सुना जाता है, वही इस शिशु के रूप में उत्पन्न हुआ हो। अथवा, मानों, अमनोरम पाप-रूपी सर्पो से डॅसे जाते हुए लोक को दुःखी देखकर ब्रह्मा ने करुणा-भाव धारण कर उसकी रक्षा के लिए ही यह बाल रूप धारण किया हो। अत्यन्त सघन, कठिन एवं विशाल स्तनों पर कराग्र रखने वाले कामदेव द्वारा किये गये पराभव से भग्न शिवसिद्धि रूपी विलासिनी के साथ हर्षित मन से रति-रस के वशीभूत होकर वह परमेश्वर-जिन-शिशु मानों स्वयंवर के 26 :: पासणाहचरिउ
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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