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________________ घत्ता- हयसेणहो कंतए ससियरकंतए सयलसुरासुर सिर रयणु। जिणु जणिउ थणंधउ तिहुअण बंधउ णट्टल थुउ सिरिहर वयणु।। 21 || Colophon इयसिरिपासचरित्तं रइयं बुहसिरिहरेण गुणमरियं । अणुमणियं मणोज्जं णट्टल णामेण भव्वेण।। छ।। विजयंत विमाणाओ वम्मादेवीइ णंदणो जाओ। कणयप्पहु चविऊणं पढमो संधी परिसमत्तो।। छ।। संधि।। Blessings to Sahu Nattala, the inspirer. यस्य भान्ति शशांक सन्निभ लसत्कीर्तिर्धरित्री तले, यस्माद्वादिजनो बभूव सकलः कल्याण तुल्यार्थिना। येनावाचि वचः प्रपञ्च रचना हीनां जनानां प्रियम, सश्रीमान् जयतात् सुधीरनुपमः श्रीनट्टलः सर्वदः।। घत्ता- चन्द्रमा के समान कान्तिवाली राजा हयसेन की उस कान्ता (वामारानी) ने समस्त सुरासुरों के शिरोमणि, तीनों लोकों के बन्धु-स्वरूप जिनेन्द्र-शिशु को जन्म दिया। कवि श्रीधर के अनुरोध से (साहू-) नट्टल ने उन (जिनेन्द्र-शिशु) की (भक्ति भरित भाव से) स्तुति की। (21) पुष्पिका इस प्रकार बुध श्रीधर ने भव्य नट्टल साहू के अनुमोदन से गुणभरित एवं मनोज्ञ (इस) पार्श्वचरित की रचना की है। उसमें वैजयन्त-विमान से कनकप्रभ नाम के देव ने चयकर वामादेवी की कोख से एक नन्दन के रूप में जन्म लिया। (इस विषय सम्बन्धी) यह प्रथम सन्धि समाप्त (हुई)। ।। छ।। सन्धि-1 आश्रयदाता नट्टल साहू के लिये आशीर्वाद ___ पृथिवी-मण्डल पर जिसकी धवल कीर्ति पूर्णमासी के चन्द्र की तरह सुशोभित है, जिसकी उदारता के कारण समस्त वादिजन जिसके कल्याणों की चाहना करने वाले बन गये तथा जिसने कवियों एवं लेखकों से अनुरोध करकरके मन्द-बुद्धिजनों के लिये प्रिय-रचनाओं का प्रणयन करवाया, सुधियों में अनुपम तथा श्री एवं समृद्धि युक्त वह नट्टल (साहू) सर्वदा जयवन्त रहे। पासणाहचरिउ :: 25
SR No.023248
Book TitlePasnah Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2006
Total Pages406
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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