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________________ (६६०) - अथ श्री संघपट्टकः तर्क शर्करा रसस्यंदिन्या वाचा तथा जगवान नेकांतवादं व्यु त्पादयति यथा विद्वांसः शेषदर्शनत्यागेन तत्रैव रज्यंत इत्यर्थः - अर्थ :- म जे तेमज प्रमाण पणे सहित बे ए हेतु माटे पण अन्य दर्शनीनी पेठे सत् अथवा असत् अथवा नित्य अथवा नित्य इत्यादि एक स्वरूप वस्तुनुं बे एम एकांतरूपपणं जैन दर्शनमां नथी केमजे विचार करतां तेनुं प्रमाण पणुं नथी थतुं. ते माटे अनेक रूप वस्तुना वादने विधे अनुरागने उत्पन्न करनार एटले कांत वादने विषे प्रीति नत्पन्न करनार तर्करूपी साकरना रसने करनारी वाणीवमे भगवान् अनेकांत वादने व्युत्पन्न करे छे जे प्रकारे विद्वान पुरुष समस्त दर्शननो त्याग करीने ते कांत वादने विषेज राजी थाय बे एटलो अर्थ ॥ टीका:- चक्रमिदं चक्रबंधः ॥ माघसमं यादृश्या वर्णन्यासपरिपाट्या माघकाव्यस्थचक्रं तथा माघकाव्यमिदं शिशुपालवध इत्येवं रूपो नाम निबंधः प्रादुर्भवति ॥ इहापि तादृश्ये वेति माघसमतार्थः ॥ अर्थः- चक्र बंध काव्य डे. ते माघ काव्यना जेतुं बे, जे प्रकारे अक्षर स्थापन करवानी परिपाटी माघकाव्यना चक्रबंधि श्लोकमा बे ते प्रकारे अहीं पण बे. शिशुपाल वध नामनो जे ग्रंथ बेतेने माघकाव्य कहे बे, तेना जेवो चक्रबंध के माटे माघ समान वो अर्थ थयो.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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