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________________ - अथ श्री संघपट्टकः 8- ( ६६५ ) अर्थः श्राचार्यादिक ग्लान होय तो पण तेले धर्म व्याख्यान अवश्य कर, ए प्रकारे आगममां पण कयुं बे. ते श्रागम वचन या प्रकारे बे जे -- टीकाः - श्रुतनिकष विदः श्रागमरहस्य निपुणाः ॥ एतेन गीतार्थता धर्मकथा धिकारित्वमाह || गीतार्थस्य तदयोगात् ॥ यदा ॥ कुसुमयसुईण महणो विविबोर्ड जवियपुंमरीयाएं || धम्मो जिरापन्नतो, पकप्पजश्ण कहेयो || अर्थ:----- आगमनुं रहस्य जाणवामां अति माह्या, ए क तेथे करीने एमने विषे गीतार्थपएं बे ए हेतु माटे धर्म कथानुं अधिकारपणुं वे एम कहे बे, घने जे गीतार्थ नथी ते धर्म कथाना अधीकारी नथी. टीका:- एवंविधा अपि स्वयं क्रिया शिथिला जविष्यतीत्यतथा ॥ त्रकालाद्यपेक्षं यस्मिन् क्षेत्रे मुष्मिन् काले यदि शब्दाबरीरबलादिग्रहः॥ एवं विधे च बले सति विधीयमानमेतदनुष्टानमस्माकमात्मसंयमशरीरयोर बाधकं जवीष्यतीति देश समयबलानुसार्यनुष्टानं विहार क्रमादिक्रियाकांमं येषां ते तथा।। अर्थः- प्रकारना बे तो पण पोते सुविहित साधु क्रिया शिथिल हो, एवी शंकानो नाश करतासता कहें बे जे, या क्षेत्रने विषे या काळते विषे आदि शब्दवमे शरीर बळादिकनुं पण ग्रहण कर एटले या प्रकार बळवते करवा मांलुं आप अनुष्टान्
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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