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________________ -18 अथ श्री संघपट्टकः ( ४१९ ) एवं जाव श्रायतननुं स्वरूप कहोंने ते मुनि निवासरूपी नृपाधि जेमां रह्यो जे ते स्थानकने पण आयतन कही ए एम क. बे ते वचन कड़े ने जे. टीकाः - जत्थ सादम्मिया बढ़वे सीलवंता बहुस्सुया || चरितायार संपन्ना श्राययणं तं वियाणा हि ॥ इत्यनेन प्रतिपादितं ॥ लिंगप्रवचनाभ्यां साधर्मिकाः शिलादिमंतः साधवो यत्र निवसंति तदायतन मिति तत्र व्याख्यानात्तत्कस्य हेतोः तडुपाधिसन्निधाना दुपाधिमतस्तद्रूपता जवत्तीति ज्ञापनार्थं ॥ अर्थः- जे जगाए साधर्मिक घणा रह्या होय ते केवा बे तो शीलवंत बे तथा बहुश्रुत बे तथा चारित्राचारवमे सहित बे एवं जे स्थानक तेने श्रायतन ए प्रकारनं जाणो. ए गाथावके आयतननुं स्वरूप प्रतिपादन कयुं, पढी तेनुं व्याख्यान ए प्रकारनं कर्यु; जे जे जगाए लिंग तथा प्रवचन एं बे वमे सरखा जाता ने शीलादि गुणवाळा साधु जे जगाए रहेता होय ते श्रायतन कहीए माटे ए प्रकारना व्याख्यान करवानुं शुं कारण बे तो ते लिंगधारी तथा ते प्रकारना सुविहित मुनि ते बे रूप ज़े उपाधि तेना संबंधी स्था.. न. पण एबे प्रकारनुं थाय बे एम जणाववा वास्ते ए प्रकारनुं जे व्याख्यान कर्यु जे नावार्थ: जे लिंगमात्र धारीना निवासथी जिनमंदिरादिक आयतन एटले श्राश्रय करवा योग्य एवां स्थानक पपा अनायतन चाय के एटले त्याग करवा योग्य थाय बे ने सुविहितना . निवासथी स्थानक मात्र श्रायतन याय दें एटले जव्य प्राणिने आश्रय करवा योग्य थाय बे.
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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