SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ محشيخقققققققققق (१२) . - अथ श्री संघपट्टका - टीका-निरंकुशं विनियन्ति नागरैः सागरै रिव ॥ राजमार्नाः प्रथीयांसोभूयांसोपि धनीकृताः ॥ १५ ॥ अर्थः-ते नगरना लोक निबंधपणे समुपनी पेठे उराया एटले समूहे समूह चाल्या तेणे करीने राजमार्ग घणा मोटा हता तो पण अति सांकमा थया. टीकाः-सुपर्व निखये सौधे जातरूपमहीभृति । इतः सिंहासनासीनो नगवान् विबुधाधिपः ॥ १६ ॥ .. अर्थ:-त्यार पठी एक दिवस गवान श्री पार्श्वनाथ स्वामि देवाधि देव, देवमंदिर समान ने सुवर्णमय पृथ्वीनुं धारण करती एवी पोतानी हवेखीने वीषे सींहासन उपर बेग हता. टीका:-यांतमेकाशथा लोक मक्सोक्य विदन्नपि ॥ असा वेति जन:क्वेति पपृडानुचरं जनम् ॥ १७॥ अर्थः-सर्व लोक एक चित्ते जता इता तेने देखीने पोते जाणे सोपण था लोक सर्वे क्यां जाय ले. एम पोसाना सेवकाने पूजकुं. ॥ टीकाः-पंचवहितपस्वी ह समायातोऽ स्त्यतो जनः वंदितुं तं प्रयातीति कुमारं सबजिज्ञपत् ॥ १७ ॥ अर्थः-त्यारे ते सेवक श्री पार्श्वनाथ कुमार प्रत्ये विज्ञापना करतो हवो जे हे महाराज अहीं पंचाग्नि साधन करनार तपस्वी श्राव्यो डे माटे तेने वंदन करवा था सर्वे लोक जाय के. ॥ ७ ॥ टीका-अथोवाच प्रजु चित्रं विपर्यस्त थियोऽयमा मो. हांधत्वात् स्वयं नष्टा नाशयंत्य परानपि ॥ २५॥
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy