SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 419
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 6 -48 अथ श्री संघपट्टकः 8 ( १९१ ) रहीत बे एटले एवी कोइ त्रिजगतमां वस्तु नथी जे जेनी जिन बिंबने उपमा करीए ए हेतु माटे अथवा उत्तम वस्तुनी उपमा दे - वानुं योग्यप ने ए हेतु माटे ते बनिश मांस तो सर्व थकी अत्यंत हीन बे एटले अति नीच बे माटे केम तेनी साथे उपमा संजवे नज संजवे केमजे उत्तम मात्र जे वस्तु तेनी पण हीन मात्रनी संघाथे उपमान तथा उपमेय नाव करवो युक्त नथी तो सर्वोत्तम जे जिन बिंब तेनी अधम जे वमिश मांस तेनी साथे उपमा घटे ज क्यांथी ने वळी ए प्रकारनी कविता करनारने पण जिन बिंबने an मांस ते बेनी उपमान उपमेय जाव देखा बते महा पापनो प्रसंग याय वे एटले एम कह्याथी कविने मोटुं पाप बंधाय के. टीकाः -- किंच काव्यालंकारमार्गे चंगा खियुष्माभिः साहसं परमं कृतमित्यादिन्यायेन हीनोत्तमस्योपमानकरणे कवे-महाकाव्याकौशलदोषा निधानात्तत्सर्वथा नायमुपमानोपमेयजावो घटां प्रांचतीति ॥ अर्थ:----वळी शुं तो काव्य तथा अलंकार तेना मारगने विषे को इक पुरुषे सारा पुरुषना माटे एम कविता करी जे चंकालनी पेठे तमोर मोटुं साहस कर्म कर्यु ते कविता जेम दोषवंत बे ए. न्याये करीने धमनी उपमा उत्तम पुरुपने करे सते कविने महा काव्य नुं जे महापणपणुं तेमां दोष बे एम कयुं बे माटे ते मत्स्य काखवाना कांटानुं मांस तेनी उपमा जिनबिंबने श्रापवी ते सर्व प्रकारे पं. उपमान उपमेय जान घटतो नयी सर्वथा अघटित के. •
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy