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________________ ( १४ ) -48. अथ श्री संघपट्टकः हितकारी पुरुषनुं वचन ने एम सूचना करी ॥ केमजे जे हितकारी बे तेज या प्रकारे कहे बे. शा हेतु माटे ? एम कहता होयने शुं ए. प्रकारे क एव शंका करी कहे बे जे पार्श्वनाथजी तो करुखाना समुद्र बे. माटे एम विचार कर्यो जे मारे किया प्रकारे या ला, कुमार्गरूपी कादवथी उधरवो, ए प्रकारनी दया रूप मृतना समुद्र भगवान े. साथी के लोक उपर अनुकंपा कर्या बिना कोई पण पोताने दुःख धनुं ते अंगीकार करीने कुमार्गने म हणे माटे. टीका:- किंकुर्वाण एवं जगादेवे स्यतश्राह स्पष्टयन् प्रकटी कुर्वन् ॥ किं कम मुनितपः कमवा निधान लौकिक तपस्विनः पंचा निरूपकष्टानुष्टानं ॥ अर्थः- शुं करता बता एम कहता होयने शुं ए प्रकारनी आशंका करी कहे बे जे कमठ तापसनुं तप प्रकट करता बता, कमठ नामे लोकमां तपस्वी कहेवातो तो तेनी पंचाग्नि साधनरूप कष्ट क्रिया हती ते प्रसिद्ध करी. टीकाः ननु कमवतपो लोके स्पष्टमेव किं तत्स्पष्टनेने - त्यता ॥ दुष्टंप्राणिवधमुग्धप्रतारणलान पूजाख्यातिकामनाविदोषकलापयुक्तं ॥ प्रर्थः - तर्क करी विशेषणनुं प्रयोजन देखाने बे जे कम तापसनुं तप लोकमां प्रगटज हतुं माटे तेने प्रगट कर्यु एमां शुं विशेष ? एवी आशंका करी ते तपनुं विशेषण देखाने बे, जे ए तप दुष्ट बे, पाप रूप बे, अनेक जंतुनी जेमां हिंसा बे, अज्ञानी जोळा माक्सने ठगवाना उपाय रूप बे, अनेक प्रकारना लान तथा लोकमां
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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