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________________ (R) - अव श्री संघपट्टका है .. टीकाः-अथास्तु नटविटादीनां तत्यापुर्जावः किनश्चिन्न। नह्येतावतापि श्राकानां श्रध्या स्नात्रं विदधानानां तजन्यपुएयहानिरितिचेन्न ॥ तेषां तत्मापुनीवस्यसुरतादिवशप्रापुष्यन्नगवदाशातनायाश्चानंतसंसारकारिएया रात्रिस्नात्रकारिश्रावक निबंधनत्वात् ॥ मजनव्याजमंतरेण निशीथिन्यां तेषां रतार्थ• मपि प्रायेण जिननवनागमनासंनवात् ॥ एवंच नटादिरागादि वृकिनिमित्तन्नावमासेषां श्रावकाणां कथं न मजनजन्यपु. एयनाशः ॥ अर्थः-हवे तुं एम कहेतो होय जे एतो नटविटादिक 'कामी पुरुषोनी एवी प्रवृत्ति थाय ने तेमां श्रमारं शुं गयुं? हमारु शं.दायुं ? एणे करीने जे श्रावके स्नान करनार श्रावक लोकोने ए स्नात्र थकी थयुं जे पुण्य तेनी हानी थती नथी. एम तारे न कहे, केम जे तेनो नत्तर कहीए बीए जे ते कामी पुरुषोनी जूमी प्रवृत्तिनी उत्पत्ति थवी तेनुं कारण ते रात्रि स्नात्र करनार श्रावक हे ए हेतु माटे ने ते कामी पुरुषो संजोगादिकने विषे परवश थाय ने ते थकी उत्पन्न यश् जे जगवंतनी आशातना तेने अनंत संसारकारणपणुं . माटे रात्रि स्नान करनार ए सर्वेनो कारणिक थयों ए हेतु माटे केम जे रात्रिए स्नात्रना मिष विना तेमनुं संजोगने अर्थे पण बहुधा जिनमंदिरमा आववानो संजव नथी ए हेतु माटे नटादिक पुरुषोनी रागादिकनी वृद्धि निमित्त कारणने पमामनार श्रावक लोकने एस्नात्र थकी केम पुण्यनो नाश न थाय एतो थायज. टीकाः-किंच नटाद्यसमंजसप्रवृत्तिदर्शनेन श्राझानामप्य
SR No.023205
Book TitleSangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages704
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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