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________________ साहित्य समाज और जैन संस्कृत महाकाव्ये જર્ 'किरातार्जुनीय', 'शिशुपालवध' तथा नैषघ महाकाव्यों में महाकाव्य लक्षणों का साग्रह निबन्धन हुआ है । अतः इन महाकाव्यों को 'रीतिबद्ध' महाकाव्य कहा जाता है ।' आगे चलकर रीतिबद्ध महाकाव्यों के मध्य भी काव्य स्तरीय मापदण्ड परिवर्तित होते रहे थे । इसी सन्दर्भ में जैन संस्कृत अलङ्कृत महाकाव्यों के निर्माण की दिशाओं पर विचार किया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जैन अलङ्कृत महाकाव्य बाह्य शैली की दृष्टि से अपने पूर्ववर्ती महाकाव्यों के विकास की धारा में एक कड़ी का कार्य कर रहे थे । ८वीं शती ई० के वराङ्गचरित से प्रारम्भ होकर लगभग १४वीं शताब्दी ई० तक जैन संस्कृत अलङ्कृत महाकाव्यों की धारा निरन्तर रूप से प्रवाहित होती रही । अधिकांश संस्कृत के जैन चरित' तथा चरितेतर-महाकाव्य अपने पूर्ववर्ती विकसनशील महाकाव्यों (जैन संस्कृत पुराणों) पर ही पूर्णतया अवलम्बित हैं । दूसरे, इन महाकाव्यों में काव्य-सौष्ठव का विशेष आग्रह है । इन तथ्यों के परिप्रेक्ष्य में महाकाव्य विकास की द्वितीय धारा जैन संस्कृत महाकाव्यों में भी उपयुक्त बैठती है । जैन संस्कृत अलङ्कृत महाकाव्यों का शिल्प वैधानिक स्वरूप जैन संस्कृत अलङ्कृत महाकाव्यों के समय तक भामह, २ दण्डी श्रादि काव्याचार्यों के महाकाव्य लक्षण लोकप्रिय हो चुके थे । इन महाकाव्यों की रचना से पूर्व ही कालिदास तभा भारवि ने महाकाव्यों की रचना कर महाकाव्य लक्षणों को व्यावहारिक रूप भी प्रदान कर दिया था। इस प्रकार जैन संस्कृत महाकाव्यों के समय संस्कृत महाकाव्य परम्परा पूर्णतः विकसनशील अवस्था से विचरण कर रही थी । संस्कृत काव्याचार्यों में भामह तथा दण्डी के अतिरिक्त रुद्रट तथा हेमचन्द्राचार्य आदि के महाकाव्य लक्षणों के अनुरूप ही जैन संस्कृत महाकाव्यों का उत्तरोत्तर शिल्प वैधानिक विकास हुआ है । महाकाव्य लक्षणों के क्रमिक विकास के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि रुद्रट ने जिन दो प्रकार की उत्पाद्य कथावस्तुओं का उल्लेख किया है, ६ तथा हेमचन्द्र ने महाकाव्य के कथानक विकास श्यामशङ्कर दीक्षित, तेरहवीं चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत महाकाव्य, जयपुर, १६६६, पृ० १५ काव्यालङ्कार, १.१६-२३ २. ३. काव्यादर्श, १.१४ - १६ ४. काव्यालङ्कार, १६.७-१६ ५. काव्यानुशासन, अध्याय ८, पृ० ४४६ ६. काव्यालङ्कार, १६.२-७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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