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________________ विषयानुक्रमणिका ६५६ मणिकम्बल २२६, २६७, ३००, तूर्य (तुरही) ३३६, ४३८, ४४८ ४३६, दुन्दुभी १८४, ४३६, रजाई १६२ पटह (नगाडा) १५६, १८४, रत्नकम्बल १६३, २२६, २२७, ४३८, ४२६, पणव ४३६, २२६, २९७, २६८ ४४०, भेरी १५७, १८४, रल्लीक (कम्बल) २६८ ४३८, ४३०, मर्दल ४४०, लोहित कम्बल २६८ माड्डुक ४३६, . .मुरज ५६, शय्या १६२, २२६, ३५२ ४४०, ४४१, मृदङ्ग १८४, सूक्ष्मवस्त्र (बारीक वस्त्र) २४६, ४३८, ४३६, यक्का २९७ २८४, ४२६, वंश ४४६, ४४१ वस्त्रशाला २५२ वल्लकी ४३८, ४३६, विक्विरिण व चनाचार्य ४१२ ४३६, वीणा २४६, ४३८. वाटक/वाटिका २१२, २६४, २४४ ४५१ (द्रष्टव्य वीणाभेद) वेणु वाणिज्य व्यवसाय १३६, १६१, . १७०, ४३६, शंख १८४, ३३६ २०२-२०४, २०७, २०६, भृङ्ग ४३६, हल ४४० २२४, २३८, ३२१ वापी २५१, ३५५ वैश्य वर्ग का कुलक्रमामत वारांगना ४८३ व्यवसाय २०३, २०४, इसका कलाकौशल में अन्तर्भाव ३०४, वास्तुशास्त्र-ग्रन्थ २४६, २६६, २७६ जैन धर्म में पन्द्रह प्रकार के २८५, २८६ निषिद्ध वाणिज्य व्यवसाय २३८ वास्तुशास्त्र सम्बन्धी विद्याएं ४२६, २३६ द्रष्टव्य-'व्यापार' ४२७ वाद ३८१, ३६२-४०३ वास्तुशास्त्रीय चित्रकला ४४३, वाद्य यंत्र १५६, १६२, १८४, १८५, ४५४ १६३, २२३, ३३६, ४६८- वास्तुशास्त्रीय व्यवसाय २३८ ४४१ वाहन निर्माण (व्यवसाय) २३७ कसाल ४३६, काहल १८४, वाहन निर्माता, (अनोजीवी) २३२ ४३६, घण्टा ४४०, घण्टिका पा० २३८ झछर ४३६, झर्भर ४३६, विकासवाद ६७ झल्लरी ४४०, डमरूक ४३६, विकेन्द्रीकरण (भू सम्पत्ति) १६७. १५६, ढक्का १८४, ४३६, तन्त्री ४३६, ताल ४४०, ४४१ भूस्वामित्व का १९७, १६८, वात्ता १६८
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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