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________________ ६५६ जन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज राष्ट्रग्राममहत्तर १२८, १२६ लिपियां ४३१ राष्ट्रमहत्तर १२६, १२६, १३४ अठारह प्रकार की ४३१, चौसठ राष्ट्रीय भावना २६, ६६, १४८, प्रकार की ४३१, तैतीस प्रकार १८७ की ४३१ रिफॉरमेटिव थियरी १०१, १०३ लेखन (व्यवसाय) २३८ रीतिकालीन साहित्य ३५ लेश्या (छह) ३६३ रूपक के दश भेद २२, २३ लोकगीत १७, ३३६, ३५०, ३५२ नाटक में मनोवृतियों का लोकधर्मी साहित्य २३ प्रदर्शन २२, स्थायी भावों का लोकनत्य १७ । मनोवैज्ञानिक औचित्य २२, लोकायतिक दर्शन ३७६, ३८०, नाटक के विविध प्रकार एवं ३६२ वर्ग चेतना २२, २३, नाटक की इनकी सामाजिक लोकप्रियता समाज धर्मी प्रवृतियां २२, ३७६, इनकी तार्किक युक्ति संगतता ३७६, लोकायतिक रेटिब्यूटिव थियरी १०१ साधु ३७६, इनकी तत्वमीमांसा रेडियो मिता १८३ ३८०, ३६६-४०२, सामन्तवादी रोगोपचार ४४६-४५० भोग विलास की प्रतिक्रिया मूर्छा ४४६, ज्वर ४४६,४५०, ३८०, प्राध्यात्मिक दर्शनों द्वारा गर्भपात एवं निरोध ४४७, विष इनका खण्डन ३८०, ३६६परिहार ४४७, अजीर्ण ४४७, ४०२ ४५०, पित्त ४४७, ४५०, वात लोकायतिक वाद ३६६-४०३, ४०६ ४४७, कफ ४४७, श्लिष्म ४४७ सन्निपात ४४७, जलोदर ४४७, लोकायतिक साधु ३७६ ४४६, विपाण्डु ४४७, गंडलेखा लोहकार (लुहार) २३४ ४४७, कुष्ठ रोग ४४७-४४६, लौकिक धर्म ३१८, ३२१, ३२४, - ३२५ दुर्नामक (पर्श) ४५० लकड़ी काटना (व्यवसाय) २३८ लौह निर्मित आयुध २३७ लगान १३६, १६०, १६५ वणिक् १३६, २२४-२२६, २२८; ललित कला १६३, ४२२, ४२६, २३६, २६०, २८२, २८४, ४२७ २८५ ललितासनिक (पद) १२६ वणिक्पति २२६ . लाक्षा वाणिज्य (व्यवसाय) २३६ वणिक्पथ ६७, २२४, २२७, २८२, लिट्रेरी एपिक ३७ २८५
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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