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________________ विषयानुक्रमणिका ६३३ २८५, नगर के दस भेद २८४, नागर २८२ द्रष्टव्य-मूल-नगर, शाखा- नागरक २७१ नगर, नपभोग्य-नगर, राज- नाटक २२, २३, २७, २३५ पाली-नगर, महानगर नाट्यशास्त्र १६, २१, २२ नग्न साधु १५८ नाड़ी (काल खण्ड) ३५६, ३८६ नट (अभिनेता) २२६, २३५ नापित (नाई) २००,२०८,२३३पा०, नदी २११, २१४, २२३, २४२, २३४ . २४४, २५१, ३३३ नाम (बन्ध) ३६० नन्दिवर्धन (उत्सव गृह) २५२ नायक २२, २३, ४३, ५६, ६०, नन्दीश्वर दीप ३४८ ६२, ६३, ६४, १३४ । नरपति ८४ नारकी (जीव) १०२, ३८५ नरेश्वर ८४ नारी शक्ति का देवत्व ४५८ नर्तक २२६ नालन्दा विश्वविद्यालय. २७६, ४२१ नतंकियों का राजनैतिक प्रयोग ४८३ नासदीय सूक्त ४५६ नर्तकियों के श्रेङ्गारिक भाव ४७२, नासि नास्तिकागमाश्रित ४०२ नर्तकी १६२, २३६, ४४२, ४७३, निकाय २६, ३४ निगम २१०, २१२, २२२, २४२नवग्रह ४५४ २४४, २५३-२५६, २६४-२६१, नवजात शिशु ४०० ३११ नव दीक्षित मुनि ३६२ निगम-एक पुनर्विवेचन २६४-२६१, नव द्वीप सिद्धान्त ५१०, ५११ माधुनिक विद्वानों के मत २६४नवनिर्षि १९२-१९४ २६६, इसकी समीक्षा रामायण काल निषि १९४, नैसर्प निधि में २६६-२७१, २६०, अष्टा१९२, पद्मनिषि १९३, पाण्डुकनिषि १९३, पिङ्गल ध्यायी में २७१-२७२, २६०, निषि १६३, महातालनिधि अभिलेखों/मुद्राभिलेखों/सिक्कों १६३ माणवनिधि १९४, में २७२-२७६, २९०, बोट शंखनिधि १६३, सर्वरत्ननिधि साहित्य में २७७-२७६,२६०, १९४, इनसे सम्बद्ध सम्पत्ति की जैन साहित्य में २५३-२५६, प्रावधारणा १९२ २५६-२८२, २८६, २६०, कोष नाइक १३४ प्रन्थों में २८२-२६५, वास्तुशास्त्र
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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