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________________ ५६४ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज प्राख्यान ३६ प्रात्मा ३६३, ३७६, ३८६-३६१, माख्यायिका २७, ५६ ३६५, ३६८, ३६६ मागम ग्रन्थ १२, २६ प्रात्मा का निराकरण ३९८, ४०० मागम प्रमाण ३६६, ३९७ प्रात्मोत्थान ३५६,३६० मागमयुग का जनदर्शन ३७५ प्रात्रेय (गोत्र) ३१७ प्रास्था प्रधान ३७५, उपदेश- प्रॉथेन्टिक एपिक ३७ परक शैली से प्रतिपादन ३७५, आदर्श गृहणी ४६४ . प्रकीर्ण एवं अव्यवस्थित ३७५, प्रादर्शनगर-मानतपुर २५१, २५२ पं० दलसुख मालवाणिया का आदर्श राजा ८८, १९२ मन्तव्य ३७५ प्रादर्श शिष्य के गुण ४१४-४१६ पागमाश्रित धर्म ३२१ प्रादान-निक्षेप ३६३ आगर २४२, २८२ प्रान्तरिक वर्गणा ३८८ प्रागार धर्म ४७० आन्ध्रसातवाहन २८६, २६१ आग्नेयास्त्र १७६, १८१-१८४ आन्ध्रसातवाहन राज्यव्यवस्था २८६ इसके विषय में ऐतिहासिक प्रापण (दुकान) १६१, २२७, २७१, अवधारणा १८२, प्रोप्पटं का मत १८२, कौटिल्य-मर्थशास्त्र प्राभिजात्य पुरुषवर्ग ४६७ में इसके निर्माण की तीन अभिजात्य समाज मूल्य ४६४ रासायनिक विधियां :-१ आभीर २६४, ५२८ अग्निधारण विधि १८२, २. प्राभीर पल्लिका २६४ क्षेप्यो अग्नियोग विधि १८२- प्राभूषण १०२, १९२-१९३, २२६, १८३, ३. विश्वासघाती विधि ३०१-३१२, ४७२ १८३ महाभारत में ब्रह्मास्त्र सम्पत्ति उपभोग के प्रतीक १६२, प्रयोग के बारे में सोवियत पिंगलनिधि में समाविष्ट १६३, विद्वान् गोरबोवस्की की धारणा स्त्रियों के प्राभूषण, ३०१, ३०४, ३०८, बच्चों के आभूषण आग्नेयास्त्र-अवधारणा १८२-१८४ ३०२, ३०६, आभूषणों की आग्नेयास्त्र सम्बन्धी प्रायुध १८२ संख्या ३०२, ३१२, सिर के प्रांगन (प्रायताकार) २४८ आभूषण ३०३-३०४, कर्णाआङ्गिरस, (गोत्र) ३१७ भूषण ३०४, ३०५, कण्ठाभूषण प्राचार-शील ३२४, ३५२ ३०५-३०७, कराभूषण ३०७, आचार्य ३६०, ४१२ . ३०६, कटिप्रदेश के आभूषण १८३
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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