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भगोलिक स्थिति
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कोशल एवं कौशल । दूसरे कोशल की राजधानी कुशवती थी जिसकी स्थापना कुश द्वारा की गई थी।' बुद्ध के समय में कोशल एक शक्तिशाली राज्य रहा था किन्तु तृतीय शताब्दी ईस्वी पूर्व में कोशल मगध के अन्तर्गत पा चुका था। कोशल का दूसरा नाम अवध भी है। दक्षिण में कोशल-नाडु की अवस्थिति भी रही थी। दक्षिणस्थ कोशल बरार से उड़ीसा तक और अमरकण्टक से बस्तर तक फैला हुमा था।२ जाजल्लदेव के रत्नपुर अभिलेख से ज्ञात होता है कि कलिङ्गराज ने दक्षिणकोशल पर विजय प्राप्त की थी और तुम्माण को अपनी राजधानी बनाया था।
२. अवन्ती -मालवा का प्राचीन नाम है । इसे उज्जयिनी के नाम से भी माना जाता है । रायस डेविड्स के अनुसार लगभग सातवीं-आठवीं शताब्दी ई. के बाद अवन्ती को मालवा कहा जाने लगा था। बाजपेयी महोदय ने उत्तरी विन्ध्यपर्वतों तथा उत्तर-पूर्वी बम्बई से अवन्ती की पहचान की है।६ धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य के अनुसार अवन्ती की स्थिति भारत के ठीक मध्य भाग में मानी गई है । स्वीं-१०वीं शताब्दियों में उज्जयिनी परमार राजाओं के अधीन रही थी।
३. पुण्ड–पाजिटर 'पुण्ड' तथा 'पौण्ड' दो भिन्न भिन्न देश मानते हैं ।१० पुण्ड के अन्तर्गत माल्दा तथा दिनाजपुर के कुछ भाग सम्मिलित हैं । 'पुण्ड' अंग तथा बङ्ग के उत्तरी भाग में जबकि 'पौण्ड' गङ्गा के दक्षिण भाग में अवस्थित था।
१. Dey, Geog. Dic., p. 103 २. Epigraphia Indica,x, No. 4 ३. बिमल चरण लाहा, प्राचीन भारत का ऐतिहासिक भूगोल, पृ० २८२ ४. वराङ्ग०, १६.३२; धर्म०, १७.३३; वर्ष० १३.१, द्वया०; ६.१६, वसन्त
१०.२५ ५. Rhys Davids, T. W., Buddhist India, Delhi, 1971, p. 28 ६. Bajpai, Geog. Ency. Pt. I. p. 41 ७. अवन्तिनाथोऽयमन्निन्द्यमूर्तिरमध्यमो मध्यमभूमिपालः ।-धर्म० १७.३३ ८. विजयेन्द्रकुमार माथुर, ऐतिहासिक स्थानावली, दिल्ली, १९६७, पृ० ४६ ६. वराङ्ग०, १६.३२, द्वया०, ८.४१ १०. Dey, Geog. Dic., p. 154