________________
२०
जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज राजकुमारों की शिक्षा से काव्य प्रयोजनों को जोड़ते हुए तत्कालीन सामाजिक सन्दर्भ में काव्य की उपादेयता स्वीकार की है। आधुनिक कालीन साहित्य समीक्षकों की धारणा यही है कि साहित्य के माध्यम से मनुष्य को सुसंस्कार, विवेक, अत्याचार एवं शोषण के दमन का साहस एवं पाशविक वृत्तियों से ऊपर उठने की प्रेरणा प्राप्त होती है । इस सम्बन्ध में प्राचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार साहित्य का उद्देश्य इन शब्दों में स्पष्ट किया गया है-''साहित्य का लक्ष्य मनुष्यता ही है जिससे मनुष्य का अज्ञान, कुसंस्कार और अविवेक, दूर नहीं होता, जिससे मनुष्य शोषण और अत्याचार के विरुद्ध सिर उठाकर खड़ा नही हो जाता है, जिससे वह छीना झपटी स्वार्थपरता और हिंसा के दलदल से उबर नहीं पाता वह पुस्तक किसी काम की नहीं है और किसी जमाने में वाग् विलास को भी साहित्य कहा जाता रहा होगा, किन्तु इस युग में साहित्य वही कहा जा सकता है जिससे मनुष्य का सर्वाङ्गीण विकास हो।"२
साहित्य के उपर्युक्त प्रयोजनों के विषय में इतना निश्चित है कि साहित्य का प्रमुख प्रयोजन समाज का पथ प्रदर्शन करना एवं सद्-असद् विवेक देना है। इसी सामाजिक प्रयोजन के अन्तर्गत प्रायः सभी काव्य प्रयोजन समाविष्ट हो जाते हैं। काव्यशास्त्रियों द्वारा प्रतिपादित इन काव्य प्रयोजनों का समाजशास्त्रीय दृष्टि से भी विशेष महत्त्व है। समाजशास्त्र के अनुसार समाज के प्रयोजन भी इन प्रयोजनों से साम्यता रखते हैं । समाज भी मनुष्य को कल्याणात्मक शिक्षाओं का उपदेश देता है तथा मनुष्य को सुरक्षा की व्यवस्था करता है।४ 'काम्टे' के अनुसार प्रारम्भ में 'परिवार' नामक संगठन से उसके पालन पोषण की विशेष व्यवस्था होती है। तदनन्तर 'राज्य' अथवा 'राष्ट्र' नामक संगठन समय-समय पर प्रतिकूल शक्तियों से उसकी रक्षा की ओर प्रयत्नशील रहता है । 'राज्य' नामक संगठन का अस्तित्व
१. वक्रोक्तिजीवितम्, १.३-५ २. हजारी प्रसाद द्विवेदी, विचार वितर्क, पृ० ५४ ३. तु०-यत्काव्यं लोकोत्तर-वर्णनानिपुणकविकर्म तत् कान्तेव सरसतापादनेना
भिमुखीकृत्य रामादिवर्तितव्यं न रावणादिवदित्युपदेशं च यथायोगं कवेः सहृदयस्य च करोतीति सर्वथा तत्र यतनीयम् ।
-काव्यप्रकाश, १.२ ४. Malinowski, Crime and Custom in Savage Society, New York
___1926, p. 139 ५. तेजमलदक, सामाजिक विचार एवं विचारक, पृ० ६६