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________________ शिक्षा, कला एवं ज्ञान-विज्ञान ध्वनि के समान षड्ज, वृषभ की डकार के समान ऋषभ, बकरी की ध्वनि के समान गान्धार,3 क्रौंच पक्षी की ध्वनि के समान मध्यम, कोकिल की कूज के समान पंचम,५ अश्व की हिनहिनाहट के समान अवत' तथा हाथी की चिंघाड़ के समान निषाद स्वर होते हैं । २. चतुर्विध ध्वनि-पदमानन्द महाकाव्य में ही वाद्ययंत्रों से चार प्रकार की ध्वनियों (च तुविधातोद्यचतुरता) के मुखरित होने का संकेत भी प्राप्त होता है। वीणा आदि वाद्यों से तत्, तालादि से धन, वंशादि से शुषिर, तथा मुरजादि से पानद्ध ध्वनियों का प्रतिस्फुरण ही 'चतुर्विधातोद्यचतुरता' के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है। २. नृत्यकला सङ्गीतकला के साथ गायन एवं नृत्य का भी अभिन्न सम्बन्ध है। जैन महाकाव्यों में सङ्गीत के आयोजन के साथ गायन आदि का विशेष वर्णन हुआ १. केऽपि केकिवपुषः कलषड्जाराविणः प्रनन्तुः । -पद्मा०, ८.६० २. लक्षणाद् वृषभतो वृषभाख्या। -वही, ८.६६ ३. रोमकोमलतरं दधतो गान्धारगानमिव । -वही, ८.६१ ४. क्रौञ्चरूपमुपचर्य चुकूजर्मध्यमध्वनित । -वही, ८.६२ ५. रेजिरे रचितपञ्चमगानाः क्लप्तकोकिलवपुः प्रतिमानाः । -वही, ८.६३ ६. धैवतध्वनिमनोरमवश्वीभूय भूरिकृतहेषितहर्षाः । -वही, ८.६४ ७. सम्मदोदित-निषादमिनादाः । -वही, ८.६५ ८. सप्त ध्वनियों की व्याख्या के लिए तु० "नासां कण्ठमुरस्तालु जिहवं दन्ताश्च संस्पृशन् । षड्भ्यः सञ्जायते यस्मात् तस्मात् 'षड्ज' इति स्मृतः ॥ षड्ज वदति मयूरो, ऋषमं गाव एव च । अजा वदति गान्धारं, क्रौञ्चो वदति मध्यमम् ॥ वसन्तकाले सम्प्राप्ते कोकिलो वदति पञ्चमम् । धवतं ह्रषते वाजी, निषादं कुञ्जरः स्वरम् ।।" -पद्मा०, ८.६०, पृ० १८४ पर उद्धृत ६. एते तव गन्धर्वाश्चतुर्विधातोद्यचतुरताप्रचुराः । -पद्या०, ४.३२ १०. प्रातोद्यस्य -वादित्रस्यचतुर्विधता यथा वीणाप्रभृतिकं ततं, तालप्रभृतिकं घनं, वंशादिकं शुषिरं, मुरजादिकं प्रानद्धं च । -वही, ४.३२, पृ० ६७
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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