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________________ ४२२ जैन संस्कृत महाकाव्यों में भारतीय समाज था परन्तु उसके साथ साथ अन्य विषयों के अध्ययन की भी वहां व्यवस्था थी।' इसी प्रकार बौद्धकालीन शिक्षा प्रवृत्तियों से प्रभावित तक्षशिला विश्वविद्यालय में जो अध्ययन विषय पढ़ाए जाते थे उनमें वेद, व्याकरण, दर्शन, साहित्य आयुर्वेद, शल्यचिकित्सा, धनुविद्या एवं युद्धकला, ज्योतिष, भविष्यकथन, मुनीमी, व्यापार, कृषि, रथचालन, इन्द्रजाल, नागवशीकरण, गुप्तनिधि अन्वेषण सङ्गीत, नृत्य और चित्रकला आदि अष्टादश शिल्पविद्यानों का अध्ययन भी होत । था। वास्तव में प्राचीन भारतीय शिक्षा संस्था के इतिहास में बौद्ध शिक्षा व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इसने सर्वप्रथम, तर्कप्रधान एवं तुलनात्म : ज्ञान-विज्ञान की अपेक्षा से पाठ्यक्रम में पढ़ाए जाने वाले विषयों को वरीयता प्रदान की । परम्परागत धर्म-संस्कृति के संरक्षण, विज्ञान टेक्नोलोजी के संवर्धन तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण इन तीनों दृष्टियों से अध्ययन विषयों की रूपरेखा तैयार की। अल्तेकर महोदय की धारणा है कि बौद्ध युग में ही सर्वप्रथम भारतीय विश्वविद्यालयों ने ललित कलामों की शिक्षा देने की परम्परा प्रारम्भ की थी। जन विद्या परम्परा जैन परम्परा के अनुसार ऋषभदेव प्रथम राजा थे जिन्होंने समाज को व्यवस्थित करने के उद्देश्य से प्रसि-मसि-कृषि की शिक्षा प्रदान की तथा जीविकोपार्जन के विशेष प्रयोजन से विविध प्रकार की कलामों का उपदेश भी दिया था। आदि पुराण के अनुसार ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठपुत्र भरत को अर्थशास्त्र, नृत्यशास्त्र वृषभसेन को गान्धर्वविद्या, अनन्तविजय को चित्रकला, वास्तुकला और मायुर्वेद, बाहुबलि को कामशास्त्र, लक्षणशास्त्र, धनुर्वेद, मश्वशास्त्र, गजशास्त्र, रत्नपरीक्षा, तन्त्रमन्त्रसिद्धि प्रादि विद्यानों की शिक्षा दी । उन्होंने अपनी पुत्रियों को लिपिशास्त्र अङ्कगणित आदि का भी उपदेश दिया ।५ जैन आगमों तथा परवर्ती महाकाव्य साहित्य में ७२ कलानों के शिक्षण की मान्यता पर विशेष बल दिया गया है । लौकिक विषयों में दक्षता एवं निपुणता प्राप्त करना इन कलामों का मुख्य उद्देश्य रहा था । बौद्धिक ज्ञान-विज्ञान, रहन-सहन १. जयशंकर मिश्र, प्राचीन भारत का सामाजिक इतिहास, १० ५२० २. वही, पृ० ५२६ ३. मोहन चन्द, प्राचीन भारतीय शिक्षा : अाधुनिक शिक्षा वैज्ञानिक सन्दर्भ (निबन्ध), Ancient Indian Culture and Literature, Delhi, 1980, pp. 112-13 ४. अल्तेकर, प्राचीन भारतीय शिक्षण पद्धति, पृ० १९७ ५. आदि०, २.४८
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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