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________________ श्रावास-व्यवस्था, खान-पान तथा वैश-भूषा 20έ २८. मुद्रिका' - अंगुलियों में धारण किया जाने वाला प्राभूषण | चन्द्रप्रभचरित में 'मणिमुद्रिका' का भी उल्लेख प्राया है । ३ (ङ) कटिप्रवेश के आभूषण २६. कटिसूत्र - सामान्यतया 'कमरबन्द' को कहते हैं । इसे 'करधनी' श्रथवा 'तगड़ी' के नाम से भी जाना जाता है । ३०. कांची * - ' मेखला' तथा 'कांचिका' इसकी अपर पर्यायवाची संज्ञाएं हैं । 'कांची' नामक आभूषण पर छोटी छोटी भूमरियां लगी होती थीं परिणामतः हिलने-डुलने पर इसे 'कलकल' का शब्द होता रहता था । इस साभूषरण का पहनने का स्थान नीवीबन्ध वाला जंघा - प्रदेश था । यशस्तिलक के अनुसार विरहावसरों पर स्त्रियों 'कांची' को गले में पहन लेतीं थीं 15 ३१. मेखलाकांची सदृश हो 'मेखला' नामक ग्राभूषण की स्थिति रही थी । धर्मशर्माभ्युदयकार ने 'कांची' तथा 'मेखला' दोनों प्राभूषणों का स्वतन्त्र रूप से प्रयोग किया है । १° 'मेखला' को भी जघन प्रदेशों में ही धारण किया जाता था । ११ ३२. रसना १२. - यह भी कांची तथा मेखला के सदृश कटि प्रदेश के आभूषणों जैसा ही एक प्राभूषरण था । कटि प्रदेश के ये तीनों आभूषण श्रमरकोष - कार के अनुसार पर्याय वाची ही हैं । '3 किन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि इन १. २. ३. पद्मा०, ४.७ ४. द्विस०, १.४३, धर्म०, १५.४६, जयन्त०, १३.२१ तथा द्वया०, ६.५४ ५. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४६ ६. सुभ्रुवः कलकलो मणिकाञ्चयाः । - धर्म०, १५.४६ चन्द्र०, १७.४६ वही, ४.७ ७. धर्म ०, १५.४६ तथा तु० - जघन्यवृत्ति पुरि यत्र काञ्चयः । — द्विस०, १.४३ ८. गोकुल चन्द्र जैन, यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १४६ ६. वराङ्ग०, १५.५७ तथा द्विस०, १५ ४४ १०. धर्म०, १५.४४, ४६ ११. मेखला गुणमवाप्य मदान्धोप्यारुरोहजघनस्थमस्याः । धर्म०, १५.४४ १२. वराङ्ग०, १५.५६ तथा चन्द्र०, ७.८६ १३. अमरकोष, २.६.१०८
SR No.023198
Book TitleJain Sanskrit Mahakavyo Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohan Chand
PublisherEastern Book Linkers
Publication Year1989
Total Pages720
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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